Saturday, 11 May 2013

धरती करती है श्रृंगार
   
रंग बिरंगे फूलों वाली
ओढ के धानी चूनर प्यारी
दुल्हन जैसा रूप संवार
धरती करती है श्रृंगार ।।

कोकिल कूके कुंजन कुंजन
भँवरे करते गुन गुन गुंजन
तितली का मनोहारी नर्तन
वन उपवन में छाई बहार
धरती करती है श्रृंगार ...

सन सन बहती पवन सुहानी ,
शीतल सुखद है और रूहानी ,
झंकृत मन वीणा के तार .
गायें राग बसन्त बहार ।।
धरती करती है श्रृंगार ....
पीली पीली  सरसों फूली
चंपा जूही गुलाब केतकी केसर की क्यारी महकी
वन उपवन में छाई बहार 
धरती कराती है श्रृंगार 

रंग दे बसंती चोला कह कर ,
फांसी- फंदा चूमा हँसकर ,
देश भक्ति का भाव लिये मन
मातृभूमि पर प्राण निसार ।।
धरती करती है श्रृंगार ........
याद बहुत तुमआती हो माँ------------

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बिछड़ी हो जब से तुम मुझसे
नयनों से अश्रु  झरते है
कौन इन्हें अब समझाए माँ
याद बहुत तुम आती हो माँ

व्याकुल जब जब मनवा होता 
शीश हाथ धर नेह जताती
बाहुपाश में अपने लेकर
मुझको धीर बंधाती थी माँ
याद बहुत तुमआती हो माँ

कष्ट अनेकों चुप चुप सहती
मुख से कुछ ना कहती थी माँ
उपकार अनेकों मुझ पर तेरे
उऋण कभी ना होऊँगी  माँ
याद बहुत तुमआती हो माँ

सूरत हर पल आँख में रहती
पर तुम अब ना दिखती हो माँ
प्यार दया ममता की मूरत
निर्मोही क्यों हो गई हो  माँ
याद बहुत तुम आती हो माँ

प्रमिला आर्य

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देश के सिपाही हथेली
पे जान रखते हैं
भारती की आन बान 
शान को बढ़ाते हैं ॥

खिल के डाल डाल पर
चमन को महकाते है
फूल मुरझा कर अपनी
खुशबू छोड़ जाते हें ॥

सामना कर शत्रुओं का
धर्म को  निभाते हें
सीने पे खाते हैं गोली
पीठ ना दिखाते हैं ॥

शूरवीर कर्मवीर
धर्म वीर होते हैं
शीश भेंट करतेअपने
शीश ना झुकाते हैं ॥

तेरी शहादत जमाना
भूल नहीं पायेगा
माँ  के वीर लाडले
पदचिह्न छोड़ जाते हैं ॥
प्रमिला आर्य