Saturday, 11 May 2013

धरती करती है श्रृंगार
   
रंग बिरंगे फूलों वाली
ओढ के धानी चूनर प्यारी
दुल्हन जैसा रूप संवार
धरती करती है श्रृंगार ।।

कोकिल कूके कुंजन कुंजन
भँवरे करते गुन गुन गुंजन
तितली का मनोहारी नर्तन
वन उपवन में छाई बहार
धरती करती है श्रृंगार ...

सन सन बहती पवन सुहानी ,
शीतल सुखद है और रूहानी ,
झंकृत मन वीणा के तार .
गायें राग बसन्त बहार ।।
धरती करती है श्रृंगार ....
पीली पीली  सरसों फूली
चंपा जूही गुलाब केतकी केसर की क्यारी महकी
वन उपवन में छाई बहार 
धरती कराती है श्रृंगार 

रंग दे बसंती चोला कह कर ,
फांसी- फंदा चूमा हँसकर ,
देश भक्ति का भाव लिये मन
मातृभूमि पर प्राण निसार ।।
धरती करती है श्रृंगार ........

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