Saturday, 29 December 2012

 जाते जाते मैं
कहती हूँ तुमसे
लड़ना तुम
अन्याय ना सहना
प्रतिकार करना

Saturday, 8 December 2012

हाइकू ............

हाइकू ............
 विघ्नों के हर्ता
रिद्धी सिद्धि दायक
मंगलकर्ता


भज ले राम
कर ले सुविचार
जीवन सार
कर,कर्म विचार
है संसार असार
 प्रमिला आर्य

माँ बाबुल के श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन -----------

 जाओ रे बदरा बाबुल के अंगना जाओ ना
बरसो ना बदरा बाबुल के अंगना बरसो ना
गरज बरस बदरा देना संदेश रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना

चिड़िया सी मैं चहकी बाबुल बगिया सी मैं महकी
अम्बुआ की डाली पे डाल झूलना चपला सी मैं थिरकी
चहक महक बाबुल चल दी विदेश रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना

भैया छूटा  भाभी छूटी माँ का वो आंगनिया
चंद्रावती के घांट छूट गए खेतों की पगडंडियाँ
पनघट की बातें छूटी छूटी संग सहेलियां 
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना
जाओ रे बदरा ...............................
सावन की जब तीज आई मनवा मेरा डोले
मात पिता की याद सताए आँगन के वो हिंडोले
क्यों ना बुलाई बाबुल अबकी बरस रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अँगना
जाओ रे बदरा ...............................

अंखिया झर झर जब भी रोई मन को धीर बंधाये                
शीश हाथ धर ममता वारी मन को धीर बंधाये 
लाड़  लड़ा  के बाबुल कर दी विदाई रे 
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना 
जाओ रे बदरा ..................................
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माँ के श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन -------------
प्यार दया करुणा का सागर ममता की मूरत होती है 
माँ के आँचल में हमको अनुभूति सुख की होती है 

रात रात वो जाग जाग कर पालन पौषण करती है 
श्रम से थक जाती हो चाहे मुख से कुछ ना कहती है 
कर्तव्यों का पालन करके मन ही मन खुश होती है 
प्यार दया करुणा का सागर ................................

त्याग तपस्या में तो माँ तापस सा जीवन जीती है 
धरती जैसी सहनशील सागर स़ी गहरी होती है
विशाल हृदय अम्बर सा माँ का पर्वत स़ी दृढ़ता होती है
प्यार दया करुणा का सागर .............................

व्यथा व्यथित आकुल व्याकुल हों माँ से छिप ना पाता है
मन की भाषा जानती आभास उसे हो जाता है
शीश हाथ ममता का धरती और धीर ना अपना खोती है
प्यार दया करुणा का सागर .....................................

तेरे ऋण से मेरी माँ उऋण कभी ना होऊँगी मैं
तेरे पावन चरणों में माँ नित नित शीश झुकाऊं मैं
आशीषें तेरी प्रबल प्रभावी पावन भावन होती हैं
प्यार दया करुणा का सागर .........................
प्रमिला आर्य
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दीप आस का----------

दीप आस का----------

दीप आस का जला
स्वप्न को संवारते
चल दिए थे राह पे
नवीन को निहारते

कोशीशें की बहुत
मंजिलें मिलीं नहीं
आफतों के शूल से

ये जिंदगी घिरी रही
आह कभी भरी नहीं
हम डगर बुहारते
स्वप्न को संवारते
नवीन को निहारते ......

हसरतें निहारती
कराह थी कराहती
सुनि किसी ने टेर ना
बेबसी की खेर ना
फिर भी चलते हम रहे
अतीत को बिसारते
स्वप्न को संवारते
नवीन को निहारते

आँधियाँ घिर घिर घिरी
बिजलियाँ गिर गिर गिरी
संकल्प पर डिगा नहीं
हताश मन हुआ नहीं
हारा हौंसला नहीं
ख़ुशी के पल निखारते
स्वप्न को संवारते
नवीन को निहारते
प्रमिला आर्य

हाइकु



हाइकु

बैठ डाल पे 
कलरव करती 
चिड़िया प्यारी 
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कोयल कूके 
अम्बुआ डाल पे 
कूक कूक के 
मीठी तान सुनाये 
मन को बहलाये 
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कोयल कूके 
अम्बुआ डाल पे 
मन को मोहे 
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मधुर वाणी 
होती मनमोहक
लगे सुहानी 
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माँ की ममता 
होती है अनमोल 
नहीं समता

जन्मदिन की शुभकामनाएं

जन्मदिन की शुभकामनाएं 
खुशियों के फूलों से महके 
जीवन आँगन सदा आपका 
धन वैभव सुखऔर सम्पदा 
करें वरण नित आपका 

शब्द वर्ण के संयोजन से 
साहित्य सृजन करते रहें 
अनुपम वाणी विलास से  
शब्द सुमन झरते रहें

हाइकु

हाइकु
नभ में तारे
टिमटिम करते
धरा निहारे

भाग्य सितारा
चमक उठे जब
हमें सवारे

नभ में तारे
टिमटिम करते
धरा निहारे

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तारों से सजी
रजनी की चूनर
है मनोहर
प्रमिला आर्य
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विदा करना
बेटी को ,है ना आसां

दिल है  रोता



यही  है  प्रथा
माता पिता की व्यथा

सच सुशीला
दुःख सुख में साथ
बेटी रहती
पराई नहीं
बेटी कभी होती है
करती प्यार


 

सवैया

चौंच मड़ावत स्वर्ण चहे हर पाख जड़ाय जवाहर नीका
पाँव मणी पहरावत हों अरु भालन चन्दन राजत टीका
पींजर स्वर्ण पठावत हों मधु से पकवान खिलावन घी का
खूब सजावन कागन को पर बोलत है कटु बैनन तीखा
प्रमिला आर्य

आहत मन

पिता  का साया
सिर पर नहीं
बीमार माँ
उपचार के लिए
धन नहीं
अपनी बदनसीबी पर
आंसू बहाती
तिस पर .............

लोगों की तीक्ष्ण
टीका टिप्पणियां 
व्यंग्य और तानों से 
आहत अंतर्मन 
चीत्कार कर उठता था 
तब फिर  .........
कर लिया संकल्प 
कुछ कर दिखाने का 
लोगों के मुँह पर 
ताले लगाने का 
हो कृत संकल्प 
चल दी नई राह पर 
खुद को संवारने 
जिंदगी निखारने ।।।
प्रमिला आर्य