Saturday, 1 September 2012

मित्रता ---------


मित्रता ----------

मन माटी में 
बीज मित्रता का
 आरोपित कर
सद्भावों से अभिसिंचित 
होकर
फूटने लगी कोंपल
कोमल कोमल
शनै :शनै:
पल्लवित होता
पुष्पित होता
सुरभित  करता 
घर आँगन और बस्ती को
लहलहाने लगता है 
 घनीभूत हो 
आल्हादित हो 
पा जाता है 
पूर्ण देह 
देता रहता नेह छाँव 
आश्रय की आशाओं को 
एक नन्हा सा बीज
मित्रता का 
यों ही 
मन की 
माटी पर 
प्रमिला आर्य 











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