Friday, 28 September 2012

माँ.........................


प्यार दया करुणा का सागर ममता की मूरत होती है 
माँ के आँचल में हमको अनुभूति सुख की होती है 

रात रात वो जाग  जाग  कर पालन पौषण  करती है 
श्रम से थक जाती हो चाहे मुख से कुछ ना कहती है 
कर्तव्यों का पालन करके मन ही मन खुश होती है 
प्यार दया करुणा का सागर ................................

त्याग तपस्या में तो माँ तापस सा जीवन जीती है 
धरती जैसी सहनशील  सागर स़ी गहरी होती है 
विशाल हृदय अम्बर सा माँ का पर्वत स़ी दृढ़ता होती है 
प्यार दया करुणा का सागर .............................

व्यथा व्यथित आकुल व्याकुलहों  माँ से छिप ना पाता है 
मन  की भाषा जानती आभास उसे हो  जाता है 
शीश हाथ ममता का धरती और धीर ना अपना खोती है 
प्यार दया करुणा का सागर .....................................

तेरे ऋण से मेरी माँ उऋण कभी ना होऊँगी मैं 
तेरे पावन चरणों में माँ नित नित शीश झुकाऊं मैं 
आशीषें तेरी प्रबल प्रभावी पावन भावन होती हैं 
प्यार दया करुणा का सागर .........................
 प्रमिला आर्य 
कैसा संयोग है इस बार  कि-- ३० सितम्बर को पिताश्री की एवं भारतीय कलेंडर के अनुसार पूर्णिमा को मातुश्री की भी पुण्य तिथि है और  इसके अनुसार स्व .माँ का श्राद्ध भी l
दोनों को हार्दिक श्रद्धांजलि 

जाओ रे बदरा बाबुल के अंगना जाओ ना 
बरसो रे बाबुल के अंगना बरसो ना 
गरज बरस बदरा देना सन्देश रे ..
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे  अंगना 
जाओ रे बदरा ..........................
  
चिड़िया स़ी मैं चहकी बाबुल बगिया स़ी मैं महकी 
अम्बुआ की डाली पे झूला झूली चपला स़ी मैं थिरकी 
चहक महक बाबुल चली मैं विदेश रे 
बिटिया की अंखिया झरती है तेरे अंगना 
जाओ रे बदरा ...............................

भैया छूटा भाभी छूटी माँ का वो आंगनिया 
चन्द्रावती के घांट छूट गए खेतों की पगडंडियाँ 
पनघट की बातें छूटी छूटी संग सहेलियां 
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना 
जाओ रे बदरा ...............................

अंखिया झर झर जब भी रोई संग में नैन भिगोये 
शीश हाथ धर ममता वारी मन को धीर बंधाये 
ममता का  हाथ खींचकर चल दिए कौन डगरिया 
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना 
जाओ रे बदरा ..................................
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माँ के श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन -------------

प्यार दया करुणा का सागर ममता की मूरत होती है 
माँ के आँचल में हमको अनुभूति सुख की होती है 

रात रात वो जाग जाग कर पालन पौषण करती है 
श्रम से थक जाती हो चाहे मुख से कुछ ना कहती है 
कर्तव्यों का पालन करके मन ही मन खुश होती है 
प्यार दया करुणा का सागर ................................
त्याग तपस्या में तो माँ तापस सा जीवन जीती है 
धरती जैसी सहनशील सागर स़ी गहरी होती है
विशाल हृदय अम्बर सा माँ का पर्वत स़ी दृढ़ता होती है
प्यार दया करुणा का सागर .............................

व्यथा व्यथित आकुल व्याकुलहों माँ से छिप ना पाता है
मन की भाषा जानती आभास उसे हो जाता है
शीश हाथ ममता का धरती और धीर ना अपना खोती है
प्यार दया करुणा का सागर .....................................

तेरे ऋण से मेरी माँ उऋण कभी ना होऊँगी मैं
तेरे पावन चरणों में माँ नित नित शीश झुकाऊं मैं
आशीषें तेरी प्रबल प्रभावी पावन भावन होती हैं
प्यार दया करुणा का सागर .........................
प्रमिला आर्य
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