*****बसंत *****
रंग बिरंगे फूलों वाली ओढ के धानी चूनर प्यारी ।
धरती करती है श्रृंगार ।।
कोकिल कूके कुंजन कुंजन
भँवरे करते गुन गुन गुंजन
तितली का मनोहारी नर्तन
वन उपवन में छाई बहार
धरती करती है श्रृंगार ...
सन सन बहती पवन सुहानी ,
शीतल सुखद है और रूहानी ,
झंकृत मन वीणा के तार .
गायें राग बसन्त बहार ।।
धरती करती है श्रृंगार ....
रंग दे बसंती चोला कह कर ,
फांसी- फंदा चूमा हँसकर ,
देश भक्ति का भाव लिये मन
मातृभूमि पर प्राण निसार ।।
धरती करती है श्रृंगार ........
प्रमिला आर्य
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