छाई बहार
तितली का नर्तन
भंवरों का गुंजार
तांका
छाई बहार
वन उपवन में
कूके कोकिल
तितली का नर्तन
भमरोँ का गुंजन प्रमिला आर्य ड़ाल ड़ाल पे
नवपल्लव फूटे
धरा मुस्काये
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दुल्हन जैसी
सज गई वसुधा
पी मिलन की
लिए मन में आस
आयेंगे ऋतुराज
छा रहा जो तिमिर का बस अंत होना चाहिए
अखिल विश्व में अब अमन सुकून होना चाहिए
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