Sunday, 3 March 2013

विपदाओं से विचलित होकर धीरज अपना खोता क्यूँ
बाधाओं से बाधित होकर बीच भंवर में  रुकता क्यूँ 
तपन तपित श्रम श्रमितथकित पग अलसाने जब बैठेंगे 
शीतल सुखद सुहाने मनहर तरुवर श्रम हर लेगें यूं 




ज़िन्दगी जी रहे हैं यही क्या कम है 
हँसते मुस्कुराते हैं चाहे हज़ार गम हैं 
शूल ही शूल बिखरे हों राह में जिनके 
फूंक फूंक कर वो रखते हर कदम हैं -
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जिसके दिल में बसा हो प्यार 
उसे कौन ना करेगा प्यार 
है अंदाज़-ए-बयां लाजवाब
बरसती  रहे हंसी की फुहार
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बैगानों से भरा है यह जहाँ 
साथ कब कोई देता है यहाँ 
कहने को तो कह देते सभी 
वक्त पड़े मुंह मोड़ लेते यहाँ l
प्रमिला आर्य 

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