Saturday, 2 March 2013

उफ़न उफ़न कर लहरें करती तांडव नर्तन जीवन में । पास किनारों के जब जाते वार थपेड़े करते है मीत जिसे हम अपना जानें घात वे ही जब करते हैं । दिल छलनी हो जाता है तब नयनों से अश्रु झरते हैं ।। सुख के हैं सब नाते रिश्ते प्रीत सभी दिखलाते हैं उछल उछल जब लहरें करती। दुर्दिन दूर किनारे करते साथ कोई ना रहते हैं ।। अ


उछल उछल जब लहरें करती तांडव नर्तन जीवन में ।
जाते पास किनारों के जब वार थपेड़े करते है|

घातें उनसे ही मिलतीं हैं जिनको अपना समझें हम ।
दिल छलनी हो जाता है तब आँखों सेआंसू झरते हैं ।।

सब रिश्ते हैं सुख के साथी सुख में प्रीत दिखाते हैं ।
दुर्दिन में कोइ साथ ना देता सभी किनारा करते हैं ।।

अंधियारों की छाया से आक्रांत निशा जब होती है ।
तब तारों के उजियारेभी तम उसका ना हरते हैं ।।

जब भी मन व्याकुल होता है भावों की हलचल है होती ।
गीत मीत तब बन जाते हैं घाव हृदय का भरते हैं ।।
प्रमिला आर्य

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