सुना था कभी भोलू जी ने ...........
मोनं मूर्खस्य भूषणं
और बना लिया इसे
अपने जीवन का आदर्श वाक्य
फिर क्या था ठान ली थी मन में
चुप रह कर न ख़ुद सहन करेंगे
ना ही होने देंगे दूसरों के साथ अन्याय अनीति
और करने लगे भोलू जी
हर अन्याय अनीति का विरोध
और घिर गए स्वयं विरोधियों के घेरे में अचरज तो तब हुआ ,
जिनके लिए विरोध मोल लिए ,
वे भी विरोधियों की कतार में नज़र आये
जहां जाते जिनसे बात करते
वे ही करते वाक् बाणों के अगणित तीव्र प्रहार
बेचारे भोलू जी का हो गया जीना दुश्वार
और तब लगे सोचने ---------
काश में चुप रहता
क्योंकि यह भी तो कहा है --
एक चुप सौ सुख
और सबसे भली चुप
प्रमिला आर्य
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