उजाड़ रहा निर्मोही पतझर जब बगिया के सिंगार को ,
अवलोक रहा था लघु सा तिनका वीराने संसार को ,
धीर बंधा कर तिनका बोला क्यों होती व्याकुल पगली .
दिन तेरे फिर से बदलेंगे आने दे बसंत बहार को ,
प्रमिला आर्य
अपने ही बेगाने बन कर बोते जब राहों में खार ,
टूट जाते अरमान दिल के दे जाते है जख्म हज़ार ,
और जख्म भी तब हो जाते हैं मरहम को मोहताज ,
देख तमाशा दुर्दिनों का तू मत हो मन लाचार /
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