Tuesday, 31 July 2012
बारा बरस में कागो बोल्यो
एक लोकोक्ति का प्रयोग ---
सोना री चाहे चोंच मंडा द्यो
पाख पाख में रतन जड़ा द्यो
पायलिया पगल्या पेना द्यो
चाहे जतनी सीख सिखा द्यो
कंठसुधार की गोली खिला द्यो l
मीठी माठी तान सुना द्यो l
कड़वी बोली छोड़े कोनी
चाहे बणाद्यो बाबा मोनी
आदत वा की बदले नाहीं
मधुरां मधुरां बोले नाहीं
जीसू ही तो बात बणी है
बारा बरस में कागो बोल्यो
काँव काँव हि कर है रे
- प्रमिला आर्य
सोना री चाहे चोंच मंडा द्यो
पाख पाख में रतन जड़ा द्यो
पायलिया पगल्या पेना द्यो
चाहे जतनी सीख सिखा द्यो
कंठसुधार की गोली खिला द्यो l
मीठी माठी तान सुना द्यो l
कड़वी बोली छोड़े कोनी
चाहे बणाद्यो बाबा मोनी
आदत वा की बदले नाहीं
मधुरां मधुरां बोले नाहीं
जीसू ही तो बात बणी है
बारा बरस में कागो बोल्यो
काँव काँव हि कर है रे
- प्रमिला आर्य
"मन चंगा तो कठौती में गंगा "..............
एक और लोकोक्ति -
****************दीन- दुखी की पीर हरी हो ,
मात -पिता की सेवा की हों
जीवन में सत्कर्म किये हों
मन में यदि सुविचार बसे हों
काशी-काबा-मक्का मदीना
तीरथ हज सब यहीं कर लीना
इसीलिए तो बात कही है, कि-
"मन चंगा तो कठौती में गंगा "
प्रमिला आर्य
****************दीन- दुखी की पीर हरी हो ,
मात -पिता की सेवा की हों
जीवन में सत्कर्म किये हों
मन में यदि सुविचार बसे हों
काशी-काबा-मक्का मदीना
तीरथ हज सब यहीं कर लीना
इसीलिए तो बात कही है, कि-
"मन चंगा तो कठौती में गंगा "
प्रमिला आर्य
भोर सुहानी आई ----------
भोर सुहानी आई
आई भोर सु-हानी आई
नवल वधु स़ी सहमी सकुची घूँघट में शरमाई आई
नज़र झुकाए चुपके चुपके
नवल वधु स़ी सहमी सकुची घूँघट में शरमाई आई
नज़र झुकाए चुपके चुपके
घर आँगन में होले होले
मंद -मंद मुस्कान बिखेरे
पग धर धरती पर उतराई
आई भोर ................
धरती के धानी आँचल
फूल खिले हैं रंग बिरंगे
मां का कर श्रंगार मनो
वन उपवन महकाती आई
आई भोर .................
काली अलकों को छिटकाती
तिमिर का संहार करती
आभा से आभासित करती
सिन्दूरी आँचल अरुणाई
आई भोर ..................
खगवृन्दों का कलरव न्यारा
भमरों का गुंजन अति प्यारा
पवन सुहानी सन सन करती
उल्लास उमंग जगाती
आई भोर ............
प्रमिला आर्य
m
माता की महिमा -------------
मातुश्री के श्री चरणों में शत -शत नमन
माता की महिमा
===========
माता की महिमा न्यारी रे, ममता की मूरत प्यारी रे l
म्हू जाऊं घणी घणी वारी रे ,माता की महिमा न्यारी रे ll
बाला ने सूखा स्वाणे है वा ,खुद गीला में सोवे है वाl
जाग जाग के पाले पोसे ,नरख नरख हरषावे रे ll
माता की महिमा .............
सूरज उग्याँ सूं फेलां जागे, सब सोयाँ पाछे वा सोवे l
दन रात एक कर देवे है अर आसीसां निछरावे रे ll
माता की महिमा ..............
दुखड़ा सगळा खुद स्हे लेवे , कोयां सूं वा खेवे कोनि l
मन ही मन मन मं घुट घुट जीवे ,मुखड़े हांसी दिखावे रे ll
माता की महिमा ............
पूत कपूत भल्याँ ही होवे ,मात कुमात न होवे है रे l
गल्त्यां म्हाँकी बिसरा के वा हिवडे म्हानें लगावे रे ll
माता की महिमा ................
सागर सूं भी घेरी छ मां ,धरती सूं भी भारी छ वा l
विपदा री आंध्यां जद जद चाले,परबत ज्यूँ अड़जावे रे ll
माता की महिमा ................
दुःख सुख म्हांके मनडे रा बीरा ,छिपे नहिं महतारी सूं रे l
मनडे री भासा जाण लेवे ,दुःख में धीर बंधावे रे ll
माता री महिमा ...............
त्याग तपस्या में तो माता सरगां सूं भी ऊंची छ रे l
संतानां रा मंगल खातर नित नित जोत जलावे रे ll
माता री महिमा ................
थारा ऋण सूं म्हारी माँ म्हू उऋण खदी ना हो पाऊँगी l
धन धन जननी म्हारी थारा चरणां सीस झुकाऊं रे ll
माता री महिमा ..............
- प्रमिला आर्य
माता की महिमा
===========
माता की महिमा न्यारी रे, ममता की मूरत प्यारी रे l
म्हू जाऊं घणी घणी वारी रे ,माता की महिमा न्यारी रे ll
बाला ने सूखा स्वाणे है वा ,खुद गीला में सोवे है वाl
जाग जाग के पाले पोसे ,नरख नरख हरषावे रे ll
माता की महिमा .............
सूरज उग्याँ सूं फेलां जागे, सब सोयाँ पाछे वा सोवे l
दन रात एक कर देवे है अर आसीसां निछरावे रे ll
माता की महिमा ..............
दुखड़ा सगळा खुद स्हे लेवे , कोयां सूं वा खेवे कोनि l
मन ही मन मन मं घुट घुट जीवे ,मुखड़े हांसी दिखावे रे ll
माता की महिमा ............
पूत कपूत भल्याँ ही होवे ,मात कुमात न होवे है रे l
गल्त्यां म्हाँकी बिसरा के वा हिवडे म्हानें लगावे रे ll
माता की महिमा ................
सागर सूं भी घेरी छ मां ,धरती सूं भी भारी छ वा l
विपदा री आंध्यां जद जद चाले,परबत ज्यूँ अड़जावे रे ll
माता की महिमा ................
दुःख सुख म्हांके मनडे रा बीरा ,छिपे नहिं महतारी सूं रे l
मनडे री भासा जाण लेवे ,दुःख में धीर बंधावे रे ll
माता री महिमा ...............
त्याग तपस्या में तो माता सरगां सूं भी ऊंची छ रे l
संतानां रा मंगल खातर नित नित जोत जलावे रे ll
माता री महिमा ................
थारा ऋण सूं म्हारी माँ म्हू उऋण खदी ना हो पाऊँगी l
धन धन जननी म्हारी थारा चरणां सीस झुकाऊं रे ll
माता री महिमा ..............
- प्रमिला आर्य
दिल से दुआ ----------
बेटियों के लिए --दिल से दुआ तुम आगे बढ़ो दिन रात
सफलता की मिले सौगात
दुआएँ करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
पढ़ लिख के ज्ञानार्जन करके
ज्ञान के दीप जलानें हैं
तुम दूर करो अज्ञान
तुम्हीं से ज्योतित हो ये जहान
सफलता की मिले सौगात
दुआएँ करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
पढ़ लिख के ज्ञानार्जन करके
ज्ञान के दीप जलानें हैं
तुम दूर करो अज्ञान
तुम्हीं से ज्योतित हो ये जहान
दुआ ये करते हैं
भारत मां की शान तुम्हीं हो
गार्गी लक्ष्मी पन्ना तुम हो
तुम ऐसे करो शुभ काम कि
जग में रोशन होवे नाम
दुआ ये करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
आँगन की बगिया ऑ क्यारी
तुम हो उसकी कलियाँ प्यारी
कलियों में महक अपार
महकाओ आँगन घर द्वार
दुआ हम करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
मात पिता कि आशा लतिका
देते वो आशीष प्रगति का
लेकर मन में विश्वास कि
पूरी कराना उनकी आस
दुआ हम करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
लक्ष्य की जोत जलाना निश दिन
मिलती है न सफलता श्रम बिन
करे यत्न जो बारम्बार
होती है ना उनकी हार
दुआ हम करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
प्रमिला आर्य
दिल से दुआ हम करते हैं
गार्गी लक्ष्मी पन्ना तुम हो
तुम ऐसे करो शुभ काम कि
जग में रोशन होवे नाम
दुआ ये करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
आँगन की बगिया ऑ क्यारी
तुम हो उसकी कलियाँ प्यारी
कलियों में महक अपार
महकाओ आँगन घर द्वार
दुआ हम करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
मात पिता कि आशा लतिका
देते वो आशीष प्रगति का
लेकर मन में विश्वास कि
पूरी कराना उनकी आस
दुआ हम करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
लक्ष्य की जोत जलाना निश दिन
मिलती है न सफलता श्रम बिन
करे यत्न जो बारम्बार
होती है ना उनकी हार
दुआ हम करते हैं
दिल से दुआ हम करते हैं
प्रमिला आर्य
बाबुल रे देस जा -----------
बाबुल रे देस जा
जा री कारी बादरी तू बाबुल रे देस जा
चिड़िया स़ी मैं चहकी रे बाबुल बगिया स़ी मैं महकी
अम्बुआ की डारी पे हींदा हींदी चपला चपल स़ी थिरकी
चहक महक बाबुल चली मैं बिदेसवा
गरज बरस बदली दीनों तू संदेसवा
जा री करी बादरी ....................
जा री करी बादरी ....................
चिड़िया स़ी मैं चहकी रे बाबुल बगिया स़ी मैं महकी
अम्बुआ की डारी पे हींदा हींदी चपला चपल स़ी थिरकी
चहक महक बाबुल चली मैं बिदेसवा
जा री कारी बादरी ....................
बीरो छुट्यो भावज छूटी छूटी थारी अटरिया
चन्द्रावती रो घांट छूट ग्यो खेतां री पगडंडियाँ
पनघट री बतियाँ छूटी छूटी संग सहेलियां
जा री कारी बादरी तू ......................
सावणिया री तीजां आई मनवा मोरा डोले
मत -पिता री ओल्यू आवे आंगनिया रे हिंडोले
काहे ना बुलाई बाबुल अब की बरसिया
जारी कारी बादरी .........................
अँखियाँ झर-झर जब भी रोई सागे नैन भिगोये
शीश हाथ धर ममता वारी मनवा धीर बंधाये
ममता रो हाथ खीँच कर चल दिए कौन डगरिया
जरी कारी बादरी .............................. ....
निर्मोही बन बाबुल मोरे चल दिए कौन नगरिया
जा री कारी बादरी तू पीहरिया रे देस जा
गरज बरस बदरी दिनों तू संदेसवा
जा री कारी बादरी तू .......................
प्रमिला आर्य
वृक्ष से------
---
सघन विटप तुम हो हितकारी,
उपकार अनेकों करते हो
सघन विटप तुम हो हितकारी,
उपकार अनेकों करते हो
अटल अविचल सीना ताने,
संताप सकल तुम हरते हो
संताप सकल तुम हरते हो
रवि तपन से आकुल व्याकुल
थकित पथिक विश्राम को आए
शीतल सुखद पवन झोकों से
थकन -तपन हर लेते हो
उल्लास हृदय में भरते हो
संताप सकल ........
कलरव करते पर फैलाए
शाखाओं पे पाखी आते
आश्रय पा कर शाखाओं का
नीड़ बना वे सुख पाते
आल्हादित तुम करते हो
संताप सकल .................
धरती की शोभा तुम से ही
जीवों का जीवन तुम से ही
प्राण वायु औषधियां देकर
रोग मुक्त कर देते हो
नव जीवन तुम देते हो
संताप सकल ..............
आतप पावस शीतलता से
तनिक नहीं तुम विचलित होते
हो तपस्वी तुम तो तरूवर
कष्ट अनेकों हँस कर सहते
समभाव सदा ही रहते हो
संताप सकल तुम हरते हो
आतप पावस शीतलता से
तनिक नहीं तुम विचलित होते
हो तपस्वी तुम तो तरूवर
कष्ट अनेकों हँस कर सहते
समभाव सदा ही रहते हो
संताप सकल तुम हरते हो
प्रमिला आर्य
तन्हा - तन्हा
होती हूँ जब तन्हा तन्हा
पग रखती तुम नन्हा नन्हा
मन मानस के दरवाजे पर
होले से सांकल खटकाती
भूली बिसरी ताज़ा करके
फिर अतीत की सैर कराती
तब होती हूँ मैं न अकेली
क्या तुम मेरी सखी सहेली
मन वीणा के तार छेड़ कर
पग रखती तुम नन्हा नन्हा
मन मानस के दरवाजे पर
होले से सांकल खटकाती
भूली बिसरी ताज़ा करके
फिर अतीत की सैर कराती
तब होती हूँ मैं न अकेली
क्या तुम मेरी सखी सहेली
मन वीणा के तार छेड़ कर
झंकृत तुम कर देती हो
अधरों पर मुस्कान कभी बन
हर्षित मुझको कर देती हो
कभी कुरेद कर ज़ख्मों को तुम
व्यथा व्यथित कर देती हो
संग में मेरे हर पल खेली
क्या तुम मेरी सखी सहेली
पूछूं तुमसे कौन सखी तुम
रिश्ता नाता क्या है तुमसे
संग सदा तुम मेरे रह कर
लुका छिपी का खेल खेलती
अब तो बतला दो तुम हेली
क्यूँ करती हो तुम अटखेली
क्या तुम मेरी सखी सहेली
हंसकर होले से वो बोली
क्यूँ अधीर होती है पगली
मैं तो तेरी साथिन असली
साथ सदा मै सबके रहती
चाहे हो कोई यतिsव्रती
मैं हूँ तेरी सखी स्मृति-
हाँ --
हाँ --
होती जब तू तन्हा तन्हा
पग धरती में नन्हा नन्हा
तब होती न तुम अकेली
सच,मैं तेरी सगी सहेली
प्रमिला आर्य
माँ का अंगना ----
माँ का अंगना ----
ऐ मेरी बुलबुल सौनचिरैया
चहक चहक क्यूँ करती री व्याकुल saun
ऐ मेरी बुलबुल सौनचिरैया
ऐ मेरी बुलबुल बात कहूँ इक
ऐ मेरी बुलबुल सौनचिरैया
चहक चहक क्यूँ करती री व्याकुल saun
ऐ मेरी बुलबुल सौनचिरैया
ऐ मेरी बुलबुल बात कहूँ इक
मानेगी ना ,ना मत कहना
तू जा मेरी माँ के अंगना
तू जा मेरी माँ के अंगना
खूब चहकना खूब फुदकना
चहक फुदक कर तू ये कहना
मैं बिटिया की बतियाँ मैया
ऐ मेरी बुलबुल सौनचिरैया
सावन का है आया महिना
याद आया माता का अंगना
डाल हिंडोले झूले झूलूं
सखियों के संग गाऊँ झूमूँ
ऐ मेरी बुलबुल जाकर कहना
क्यों ना बुलाई बिटिया को मैया
ऐ मेरी बुलबुल सौनचिरैया
दूर देस में वास है माँ का
शीश हाथ है आज भी माँ का
फलती हैं आशीषें अब भी
ले आना री उसका संदेसा
मैं तकती तेरी बाट बटैया
ऐ मेरी बुलबुल सोन चिरैया
प्रमिला आर्य
चहक फुदक कर तू ये कहना
मैं बिटिया की बतियाँ मैया
ऐ मेरी बुलबुल सौनचिरैया
सावन का है आया महिना
याद आया माता का अंगना
डाल हिंडोले झूले झूलूं
सखियों के संग गाऊँ झूमूँ
ऐ मेरी बुलबुल जाकर कहना
क्यों ना बुलाई बिटिया को मैया
ऐ मेरी बुलबुल सौनचिरैया
दूर देस में वास है माँ का
शीश हाथ है आज भी माँ का
फलती हैं आशीषें अब भी
ले आना री उसका संदेसा
मैं तकती तेरी बाट बटैया
ऐ मेरी बुलबुल सोन चिरैया
प्रमिला आर्य
फूल से --------
फूल से ------------
देख कर
जिंदादिली
पूछा मनुज ने
फूल से
वन उपवन
क्यों महकाते हो
घिर के भी
तुम शूल से
मुस्काया
फिर ........
होले से
फूल बोला
यों मनुज से
काँटों से घिर कर भी
छोड़ता नहीं हूँ मैं
अपनी पहचान
और
अपना स्वभाव
इसीलिए
काँटों की
परवाह ना कर
सुरभित करता हूँ मैं
अपने सौरभ से
इस चमन को
सारे जहाँ को
प्रमिला आर्य
पार नदी के जाना हैं -------------
बैठ गए हैं नैया में हम पार नदी के जाना हैं
दिल में ले के आस कि हमको तटबंधों को पाना है
उठ उठ लहरें मचल रही हैं नैया डगमग डोल रही है
हो ना विचलित तू मेरे माझी तुझे किनारा पाना है
पार नदी के जाना है .............................. ...
झंझाओं ने झकझोरा है तूफानों ने आ घेरा है
धीरज खोना ना मेरे माझी तुझे किनारा पाना है
पार नदी के जाना है .............................. ..
धाराएँ प्रतिकूल हुई है तेरी दिशाएँ बदल रही है
धाराओं का रुख तू बदल दे तुझे किनारा पाना है
पार नदी के जाना है .............................. ..
प्रमिला आर्य
दिल में ले के आस कि हमको तटबंधों को पाना है
उठ उठ लहरें मचल रही हैं नैया डगमग डोल रही है
हो ना विचलित तू मेरे माझी तुझे किनारा पाना है
पार नदी के जाना है ..............................
झंझाओं ने झकझोरा है तूफानों ने आ घेरा है
धीरज खोना ना मेरे माझी तुझे किनारा पाना है
पार नदी के जाना है ..............................
धाराएँ प्रतिकूल हुई है तेरी दिशाएँ बदल रही है
धाराओं का रुख तू बदल दे तुझे किनारा पाना है
पार नदी के जाना है ..............................
प्रमिला आर्य
मधुर गान --------
मिल जाता जब
मन मानस को
सबल सम्बल
या कर जाती पीर
प्रबल प्रहार
निसृत होते तब
हृदयोद्गार
और
रच जाता तभी
एक मनोहर गान /
मन वीणा के तार
सुर ताल लय में
एक साथ जब
होते झंकृत
छिड़ने लगती
तानें और आलाप
बन जातीं हैं
राग मधुर ,और
थिरकने लगता
मन मयूर
यूँ ही बार बार
प्रमिला आर्य
मन मानस को
सबल सम्बल
या कर जाती पीर
प्रबल प्रहार
निसृत होते तब
हृदयोद्गार
और
रच जाता तभी
एक मनोहर गान /
मन वीणा के तार
सुर ताल लय में
एक साथ जब
होते झंकृत
छिड़ने लगती
तानें और आलाप
बन जातीं हैं
राग मधुर ,और
थिरकने लगता
मन मयूर
यूँ ही बार बार
प्रमिला आर्य
अरमानों के पर लगा कर---------
अरमानों के पर लगा कर
सपने अपने मन में लेकर
उड़ना चाहा था परिंदे ने
गगनचुंबी ऊँचाइयों पर
छू लेने की चाहत थी
नीलाम्बर को
पर बेदर्द ज़माने ने
उड़ान भरने से पहले ही
नोच डाले उसके पर
रख दिया
पिंजरे में कैद कर
धराशाई हुआ ऐसा
कि फिर
उड़ ना पाया
चहक चहक कर
गीत ना गा पाया
उड़ना चाहा था परिंदे ने
गगनचुंबी ऊँचाइयों पर
छू लेने की चाहत थी
नीलाम्बर को
पर बेदर्द ज़माने ने
उड़ान भरने से पहले ही
नोच डाले उसके पर
रख दिया
पिंजरे में कैद कर
धराशाई हुआ ऐसा
कि फिर
उड़ ना पाया
चहक चहक कर
गीत ना गा पाया
रूठा भाग्य टूटे सपने
अपने भी रहे ना अपने
प्रमिला आर्य
प्रमिला आर्य
पा लेने को चली किनारा ...
पा लेने को चली किनारा
उबड़ खाबड़ कंकर पत्थर
दृढ बंधों को तोड़ चली वो
बाधाओं के बीहड़ बन में
मिल पाया ना कोई सहारा
पा लेने को चली किनारा
स्वप्न संजोये दिल में अपने
अरमानों के पुल बांधे
छोड़ द्वार बाबुल का अपने
पी का देस लगे है प्यारा
पा लेने को चली किनारा
उठ कर गिरती गिर कर उठती
चली जा रही अथक अनवरत
आस न टूटी मन ना हारा
जिस रोज मिले प्रियतम प्यारा
वो ही होगा मेरा किनारा ....
Sunday, 22 July 2012
काले बादल
काले बादल
प्यासी की धरती की प्यास बुझाने
आये काले काले बादल
गरज गरज कर मचल मचल कर
बरसे काले काले बादल
शोले बरसाते सूरज का
दम्भ मिटाने आये बादल
ताप तप्त जगतीतल भर का
ताप मिटाने आये बादल
पीताभ हुआ धराका अँचलधानी चूनर लाये बादल
प्यासी धरती की प्यास बुझाने
आये काले काले बादल
प्रमिला आर्य
प्यासी की धरती की प्यास बुझाने
आये काले काले बादल
गरज गरज कर मचल मचल कर
बरसे काले काले बादल
शोले बरसाते सूरज का
दम्भ मिटाने आये बादल
ताप तप्त जगतीतल भर का
ताप मिटाने आये बादल
पीताभ हुआ धराका अँचलधानी चूनर लाये बादल
प्यासी धरती की प्यास बुझाने
आये काले काले बादल
प्रमिला आर्य
स्वप्न ------
स्वप्न ------
सपनो के महल
बनाये थे जो कभी
बिखर गए
घरौंदों के मानिंद ,
सपने सलोने
जो देखे थे कभी
बिखर गए
टूट कर कांच की तरह,
स्वप्न बिखरे टूटे
ध्वस्त हुए तो क्या ?
हम ...
फिर से देखेंगे स्वप्न
फूलों की तरह
सुकोमल
सुन्दर और मनोहर
जो खिलेंगे फूलेंगे
काँटों में रह कर भी
महकाएँगे
हमारी आशाओं के उपवन
और -अंतत:
दे जायेंगे
सुनहरे भविष्य के
ठोस सुदृढ़ उपजाऊ
नव बीज
इस युग के l
प्रमिला आर्य
सपनो के महल
बनाये थे जो कभी
बिखर गए
घरौंदों के मानिंद ,
सपने सलोने
जो देखे थे कभी
बिखर गए
टूट कर कांच की तरह,
स्वप्न बिखरे टूटे
ध्वस्त हुए तो क्या ?
हम ...
फिर से देखेंगे स्वप्न
फूलों की तरह
सुकोमल
सुन्दर और मनोहर
जो खिलेंगे फूलेंगे
काँटों में रह कर भी
महकाएँगे
हमारी आशाओं के उपवन
और -अंतत:
दे जायेंगे
सुनहरे भविष्य के
ठोस सुदृढ़ उपजाऊ
नव बीज
इस युग के l
प्रमिला आर्य
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