अरमानों के पर लगा कर
सपने अपने मन में लेकर
उड़ना चाहा था परिंदे ने
गगनचुंबी ऊँचाइयों पर
छू लेने की चाहत थी
नीलाम्बर को
पर बेदर्द ज़माने ने
उड़ान भरने से पहले ही
नोच डाले उसके पर
रख दिया
पिंजरे में कैद कर
धराशाई हुआ ऐसा
कि फिर
उड़ ना पाया
चहक चहक कर
गीत ना गा पाया
उड़ना चाहा था परिंदे ने
गगनचुंबी ऊँचाइयों पर
छू लेने की चाहत थी
नीलाम्बर को
पर बेदर्द ज़माने ने
उड़ान भरने से पहले ही
नोच डाले उसके पर
रख दिया
पिंजरे में कैद कर
धराशाई हुआ ऐसा
कि फिर
उड़ ना पाया
चहक चहक कर
गीत ना गा पाया
रूठा भाग्य टूटे सपने
अपने भी रहे ना अपने
प्रमिला आर्य
प्रमिला आर्य
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