Sunday, 22 July 2012

स्वप्न ------

स्वप्न ------
सपनो के महल
बनाये थे जो कभी
बिखर गए 
घरौंदों के मानिंद ,
सपने सलोने
जो देखे थे कभी
बिखर गए
टूट कर कांच की तरह,
स्वप्न बिखरे टूटे
ध्वस्त हुए तो क्या ?
हम ...
फिर से देखेंगे स्वप्न
फूलों की तरह
सुकोमल
सुन्दर और मनोहर
जो खिलेंगे फूलेंगे
काँटों में रह कर भी
महकाएँगे
हमारी आशाओं के उपवन
और -अंतत:
दे जायेंगे
सुनहरे भविष्य के
ठोस सुदृढ़ उपजाऊ
नव बीज
इस युग के l
प्रमिला आर्य

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