Tuesday, 31 July 2012

पा लेने को चली किनारा ...



पा लेने को चली किनारा 
उबड़ खाबड़  कंकर पत्थर 
दृढ बंधों को तोड़  चली वो
बाधाओं के बीहड़ बन में 
मिल पाया ना कोई सहारा 
पा लेने को चली किनारा 
स्वप्न संजोये दिल में अपने 
अरमानों के पुल  बांधे 
छोड़ द्वार बाबुल का अपने 
पी का देस लगे है प्यारा 
पा लेने को चली किनारा 
उठ कर गिरती गिर कर उठती 
चली जा रही अथक अनवरत 
आस न टूटी मन ना हारा 
जिस रोज मिले प्रियतम प्यारा 
वो ही होगा मेरा किनारा ....




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