Tuesday, 31 July 2012

फूल से --------

 फूल से ------------
देख कर 
जिंदादिली 
पूछा मनुज ने 
फूल से 
वन उपवन 
क्यों महकाते हो 
घिर के भी 
तुम शूल से 
मुस्काया  
फिर ........
होले से 
फूल बोला 
यों मनुज से 
काँटों से घिर कर भी  
छोड़ता नहीं हूँ मैं 
अपनी पहचान 
और 
अपना स्वभाव 
इसीलिए 
काँटों की 
परवाह ना कर 
सुरभित करता हूँ मैं 
अपने सौरभ से 
इस चमन को 
सारे जहाँ को 
प्रमिला आर्य 

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