भोर सुहानी आई
आई भोर सु-हानी आई
नवल वधु स़ी सहमी सकुची घूँघट में शरमाई आई
नज़र झुकाए चुपके चुपके
नवल वधु स़ी सहमी सकुची घूँघट में शरमाई आई
नज़र झुकाए चुपके चुपके
घर आँगन में होले होले
मंद -मंद मुस्कान बिखेरे
पग धर धरती पर उतराई
आई भोर ................
धरती के धानी आँचल
फूल खिले हैं रंग बिरंगे
मां का कर श्रंगार मनो
वन उपवन महकाती आई
आई भोर .................
काली अलकों को छिटकाती
तिमिर का संहार करती
आभा से आभासित करती
सिन्दूरी आँचल अरुणाई
आई भोर ..................
खगवृन्दों का कलरव न्यारा
भमरों का गुंजन अति प्यारा
पवन सुहानी सन सन करती
उल्लास उमंग जगाती
आई भोर ............
प्रमिला आर्य
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