जाओ रे बदरा बाबुल के अंगना जाओ ना
बरसो ना बदरा बाबुल के अंगना बरसो ना
गरज बरस बदरा देना संदेश रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना
चिड़िया सी मैं चहकी बाबुल बगिया सी मैं महकी
अम्बुआ की डाली पे डाल झूलना चपला सी मैं थिरकी
चहक महक बाबुल चल दी विदेश रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना
भैया छूटा भाभी छूटी माँ का वो आंगनिया
चंद्रावती के घांट छूट गए खेतों की पगडंडियाँ
पनघट की बातें छूटी छूटी संग सहेलियां
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना
जाओ रे बदरा ...............................
सावन की जब तीज आई मनवा मेरा डोले
मात पिता की याद सताए आँगन के वो हिंडोले
क्यों ना बुलाई बाबुल अबकी बरस रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अँगना
जाओ रे बदरा ...............................
अंखिया झर झर जब भी रोई मन को धीर बंधाये
शीश हाथ धर ममता वारी मन को धीर बंधाये
लाड़ लड़ा के बाबुल कर दी विदाई रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना
जाओ रे बदरा ..................................
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माँ के श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन -------------
प्यार दया करुणा का सागर ममता की मूरत होती है
माँ के आँचल में हमको अनुभूति सुख की होती है
रात रात वो जाग जाग कर पालन पौषण करती है
श्रम से थक जाती हो चाहे मुख से कुछ ना कहती है
कर्तव्यों का पालन करके मन ही मन खुश होती है
प्यार दया करुणा का सागर ................................
त्याग तपस्या में तो माँ तापस सा जीवन जीती है
धरती जैसी सहनशील सागर स़ी गहरी होती है
विशाल हृदय अम्बर सा माँ का पर्वत स़ी दृढ़ता होती है
प्यार दया करुणा का सागर .............................
व्यथा व्यथित आकुल व्याकुल हों माँ से छिप ना पाता है
मन की भाषा जानती आभास उसे हो जाता है
शीश हाथ ममता का धरती और धीर ना अपना खोती है
प्यार दया करुणा का सागर .....................................
तेरे ऋण से मेरी माँ उऋण कभी ना होऊँगी मैं
तेरे पावन चरणों में माँ नित नित शीश झुकाऊं मैं
आशीषें तेरी प्रबल प्रभावी पावन भावन होती हैं
प्यार दया करुणा का सागर .........................
प्रमिला आर्य
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