Saturday, 29 December 2012

 जाते जाते मैं
कहती हूँ तुमसे
लड़ना तुम
अन्याय ना सहना
प्रतिकार करना

Saturday, 8 December 2012

हाइकू ............

हाइकू ............
 विघ्नों के हर्ता
रिद्धी सिद्धि दायक
मंगलकर्ता


भज ले राम
कर ले सुविचार
जीवन सार
कर,कर्म विचार
है संसार असार
 प्रमिला आर्य

माँ बाबुल के श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन -----------

 जाओ रे बदरा बाबुल के अंगना जाओ ना
बरसो ना बदरा बाबुल के अंगना बरसो ना
गरज बरस बदरा देना संदेश रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना

चिड़िया सी मैं चहकी बाबुल बगिया सी मैं महकी
अम्बुआ की डाली पे डाल झूलना चपला सी मैं थिरकी
चहक महक बाबुल चल दी विदेश रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना

भैया छूटा  भाभी छूटी माँ का वो आंगनिया
चंद्रावती के घांट छूट गए खेतों की पगडंडियाँ
पनघट की बातें छूटी छूटी संग सहेलियां 
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना
जाओ रे बदरा ...............................
सावन की जब तीज आई मनवा मेरा डोले
मात पिता की याद सताए आँगन के वो हिंडोले
क्यों ना बुलाई बाबुल अबकी बरस रे
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अँगना
जाओ रे बदरा ...............................

अंखिया झर झर जब भी रोई मन को धीर बंधाये                
शीश हाथ धर ममता वारी मन को धीर बंधाये 
लाड़  लड़ा  के बाबुल कर दी विदाई रे 
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना 
जाओ रे बदरा ..................................
============================

माँ के श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन -------------
प्यार दया करुणा का सागर ममता की मूरत होती है 
माँ के आँचल में हमको अनुभूति सुख की होती है 

रात रात वो जाग जाग कर पालन पौषण करती है 
श्रम से थक जाती हो चाहे मुख से कुछ ना कहती है 
कर्तव्यों का पालन करके मन ही मन खुश होती है 
प्यार दया करुणा का सागर ................................

त्याग तपस्या में तो माँ तापस सा जीवन जीती है 
धरती जैसी सहनशील सागर स़ी गहरी होती है
विशाल हृदय अम्बर सा माँ का पर्वत स़ी दृढ़ता होती है
प्यार दया करुणा का सागर .............................

व्यथा व्यथित आकुल व्याकुल हों माँ से छिप ना पाता है
मन की भाषा जानती आभास उसे हो जाता है
शीश हाथ ममता का धरती और धीर ना अपना खोती है
प्यार दया करुणा का सागर .....................................

तेरे ऋण से मेरी माँ उऋण कभी ना होऊँगी मैं
तेरे पावन चरणों में माँ नित नित शीश झुकाऊं मैं
आशीषें तेरी प्रबल प्रभावी पावन भावन होती हैं
प्यार दया करुणा का सागर .........................
प्रमिला आर्य
--------------------------------------------------


दीप आस का----------

दीप आस का----------

दीप आस का जला
स्वप्न को संवारते
चल दिए थे राह पे
नवीन को निहारते

कोशीशें की बहुत
मंजिलें मिलीं नहीं
आफतों के शूल से

ये जिंदगी घिरी रही
आह कभी भरी नहीं
हम डगर बुहारते
स्वप्न को संवारते
नवीन को निहारते ......

हसरतें निहारती
कराह थी कराहती
सुनि किसी ने टेर ना
बेबसी की खेर ना
फिर भी चलते हम रहे
अतीत को बिसारते
स्वप्न को संवारते
नवीन को निहारते

आँधियाँ घिर घिर घिरी
बिजलियाँ गिर गिर गिरी
संकल्प पर डिगा नहीं
हताश मन हुआ नहीं
हारा हौंसला नहीं
ख़ुशी के पल निखारते
स्वप्न को संवारते
नवीन को निहारते
प्रमिला आर्य

हाइकु



हाइकु

बैठ डाल पे 
कलरव करती 
चिड़िया प्यारी 
============
कोयल कूके 
अम्बुआ डाल पे 
कूक कूक के 
मीठी तान सुनाये 
मन को बहलाये 
=============
कोयल कूके 
अम्बुआ डाल पे 
मन को मोहे 
============
मधुर वाणी 
होती मनमोहक
लगे सुहानी 
----------------
माँ की ममता 
होती है अनमोल 
नहीं समता

जन्मदिन की शुभकामनाएं

जन्मदिन की शुभकामनाएं 
खुशियों के फूलों से महके 
जीवन आँगन सदा आपका 
धन वैभव सुखऔर सम्पदा 
करें वरण नित आपका 

शब्द वर्ण के संयोजन से 
साहित्य सृजन करते रहें 
अनुपम वाणी विलास से  
शब्द सुमन झरते रहें

हाइकु

हाइकु
नभ में तारे
टिमटिम करते
धरा निहारे

भाग्य सितारा
चमक उठे जब
हमें सवारे

नभ में तारे
टिमटिम करते
धरा निहारे

=========

तारों से सजी
रजनी की चूनर
है मनोहर
प्रमिला आर्य
==================
विदा करना
बेटी को ,है ना आसां

दिल है  रोता



यही  है  प्रथा
माता पिता की व्यथा

सच सुशीला
दुःख सुख में साथ
बेटी रहती
पराई नहीं
बेटी कभी होती है
करती प्यार


 

सवैया

चौंच मड़ावत स्वर्ण चहे हर पाख जड़ाय जवाहर नीका
पाँव मणी पहरावत हों अरु भालन चन्दन राजत टीका
पींजर स्वर्ण पठावत हों मधु से पकवान खिलावन घी का
खूब सजावन कागन को पर बोलत है कटु बैनन तीखा
प्रमिला आर्य

आहत मन

पिता  का साया
सिर पर नहीं
बीमार माँ
उपचार के लिए
धन नहीं
अपनी बदनसीबी पर
आंसू बहाती
तिस पर .............

लोगों की तीक्ष्ण
टीका टिप्पणियां 
व्यंग्य और तानों से 
आहत अंतर्मन 
चीत्कार कर उठता था 
तब फिर  .........
कर लिया संकल्प 
कुछ कर दिखाने का 
लोगों के मुँह पर 
ताले लगाने का 
हो कृत संकल्प 
चल दी नई राह पर 
खुद को संवारने 
जिंदगी निखारने ।।।
प्रमिला आर्य 











Friday, 28 September 2012

माँ.........................


प्यार दया करुणा का सागर ममता की मूरत होती है 
माँ के आँचल में हमको अनुभूति सुख की होती है 

रात रात वो जाग  जाग  कर पालन पौषण  करती है 
श्रम से थक जाती हो चाहे मुख से कुछ ना कहती है 
कर्तव्यों का पालन करके मन ही मन खुश होती है 
प्यार दया करुणा का सागर ................................

त्याग तपस्या में तो माँ तापस सा जीवन जीती है 
धरती जैसी सहनशील  सागर स़ी गहरी होती है 
विशाल हृदय अम्बर सा माँ का पर्वत स़ी दृढ़ता होती है 
प्यार दया करुणा का सागर .............................

व्यथा व्यथित आकुल व्याकुलहों  माँ से छिप ना पाता है 
मन  की भाषा जानती आभास उसे हो  जाता है 
शीश हाथ ममता का धरती और धीर ना अपना खोती है 
प्यार दया करुणा का सागर .....................................

तेरे ऋण से मेरी माँ उऋण कभी ना होऊँगी मैं 
तेरे पावन चरणों में माँ नित नित शीश झुकाऊं मैं 
आशीषें तेरी प्रबल प्रभावी पावन भावन होती हैं 
प्यार दया करुणा का सागर .........................
 प्रमिला आर्य 
कैसा संयोग है इस बार  कि-- ३० सितम्बर को पिताश्री की एवं भारतीय कलेंडर के अनुसार पूर्णिमा को मातुश्री की भी पुण्य तिथि है और  इसके अनुसार स्व .माँ का श्राद्ध भी l
दोनों को हार्दिक श्रद्धांजलि 

जाओ रे बदरा बाबुल के अंगना जाओ ना 
बरसो रे बाबुल के अंगना बरसो ना 
गरज बरस बदरा देना सन्देश रे ..
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे  अंगना 
जाओ रे बदरा ..........................
  
चिड़िया स़ी मैं चहकी बाबुल बगिया स़ी मैं महकी 
अम्बुआ की डाली पे झूला झूली चपला स़ी मैं थिरकी 
चहक महक बाबुल चली मैं विदेश रे 
बिटिया की अंखिया झरती है तेरे अंगना 
जाओ रे बदरा ...............................

भैया छूटा भाभी छूटी माँ का वो आंगनिया 
चन्द्रावती के घांट छूट गए खेतों की पगडंडियाँ 
पनघट की बातें छूटी छूटी संग सहेलियां 
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना 
जाओ रे बदरा ...............................

अंखिया झर झर जब भी रोई संग में नैन भिगोये 
शीश हाथ धर ममता वारी मन को धीर बंधाये 
ममता का  हाथ खींचकर चल दिए कौन डगरिया 
बिटिया की अँखियाँ झरती है तेरे अंगना 
जाओ रे बदरा ..................................
============================

माँ के श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन -------------

प्यार दया करुणा का सागर ममता की मूरत होती है 
माँ के आँचल में हमको अनुभूति सुख की होती है 

रात रात वो जाग जाग कर पालन पौषण करती है 
श्रम से थक जाती हो चाहे मुख से कुछ ना कहती है 
कर्तव्यों का पालन करके मन ही मन खुश होती है 
प्यार दया करुणा का सागर ................................
त्याग तपस्या में तो माँ तापस सा जीवन जीती है 
धरती जैसी सहनशील सागर स़ी गहरी होती है
विशाल हृदय अम्बर सा माँ का पर्वत स़ी दृढ़ता होती है
प्यार दया करुणा का सागर .............................

व्यथा व्यथित आकुल व्याकुलहों माँ से छिप ना पाता है
मन की भाषा जानती आभास उसे हो जाता है
शीश हाथ ममता का धरती और धीर ना अपना खोती है
प्यार दया करुणा का सागर .....................................

तेरे ऋण से मेरी माँ उऋण कभी ना होऊँगी मैं
तेरे पावन चरणों में माँ नित नित शीश झुकाऊं मैं
आशीषें तेरी प्रबल प्रभावी पावन भावन होती हैं
प्यार दया करुणा का सागर .........................
प्रमिला आर्य
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Monday, 24 September 2012

बावरा मना क्यूँ है व्याकुल बीते दिन को याद करके 
भूल जा अब उस विगत को आज का सम्मान करके 

कंटकों से जूझ कर चलना भला आता जिसे हो 
राह की कठिनाई से लड़ना भला भाता जिसे हो 
फूल को पाना जिसे हो शूल चुनता उस डगर के 
भूल जा तो उस विगत को ..,...........................

अंधेर काली रात का  तम घना छाया हुआ है
चाँद को डसने यहाँ पर राहू मंडराया हुआ है 
भोर का उजियारा होगा रात का चल माँ करके 
भूल जा तू उस विगत को ..........................

खुद पे ही करके भरोसा सिंह सा तू चल अकेला 
भाग्य भी होता उन्ही का जो सतत चलता चलेगा 
बड़ चलेगा तू भी एक दिन सपनों को साकार करके 
भूल जा तू उस विगत को ..............................
प्रमिला आर्य 

Saturday, 1 September 2012

मित्रता ---------


मित्रता ----------

मन माटी में 
बीज मित्रता का
 आरोपित कर
सद्भावों से अभिसिंचित 
होकर
फूटने लगी कोंपल
कोमल कोमल
शनै :शनै:
पल्लवित होता
पुष्पित होता
सुरभित  करता 
घर आँगन और बस्ती को
लहलहाने लगता है 
 घनीभूत हो 
आल्हादित हो 
पा जाता है 
पूर्ण देह 
देता रहता नेह छाँव 
आश्रय की आशाओं को 
एक नन्हा सा बीज
मित्रता का 
यों ही 
मन की 
माटी पर 
प्रमिला आर्य 











पा कर स्वर का साथ तार वीणा के  बजने लगे 
लय और आलाप के संग गीत सुन्दर सजने लगे 
आरोही अवरोही बन कर राग मधुर बहने लगे  
भाव सरित की लहरों में अवगाहन करने लगे 

भरे उमंग 
हो जब तकरार 
सजन संग 
============
तांका  -------
रजनी रानी 
झिलमिल तारों की 
ओढ चूनर 
श्याम सलोनी तुम 
लगती प्यारी प्यारी
===============
चांदनी तुम 
शीतल सुखदाई 
मन को भाती
करती हो धरा को 
आभा से आभासित 
=================
सच्चिदानंद
ज्ञान -बुद्धि -विवेक 
दो मेरे प्रभु 
============
क्षणभंगुर 
है चराचर जीव 
सारा संसार 
=============
महिना बीता
पाक़ रमजान का 
आज है ईद 
और बनी सिवैंया 
हो मुबारकबाद 

प्रमिला आर्य 

हाइकू -----



हाइकू -----
मानव जन्म 
अनमोल भर लें 
ख़ुशी  के  रंग  
============
आओ भर दें 
दीन दुखी के मन 
ख़ुशी के रंग 
========
गरीब के भी 
जीवन में भर दें 
ख़ुशी के रंग 
==========
   जीवन 
धार ले  धर्म 
जीवन है नश्वर 
कर सत्कर्म 
==============
जीवन जीना
आसन ना जग में 
कष्ट अनेक 
==============
फल ना चाहो 
कर्म करो निष्काम 
जीवन जीओ 
============
गम का साया 
खुशियों की बहार
जिन्दगी संग 
=============
जीवन वो ही 
चले अनवरत 
रुके तो मौत 
=============
आहें ना भर 
दु:ख सुख चलते 
जीवन संग 
=============
प्रमिला आर्य 


हाइकु , तांका ------




हाइकु , तांका ------

खिला काँटों में 
महकाता चमन 
लगता प्यारा 
============
आँख से  आंसू 
गिरने ना दें कभी 
हैं अनमोल
============
आँख से आंसू 
गिर कर कहते 
मन की व्यथा 
===========
बंसी अधर 
चंचल चितवन 
राधा के संग 
रास रचाए कान्हा 
यमुना तट पर 
===========
बंसी अधर 
चंचल चितवन 
राधा के संग 
रास रचाए कान्हा 
यमुना तट पर 
===========
मनमोहना 
चंचल चपल तू 
लगता प्यारा
===========
आँख का  तारा 
लूं मैं तेरी बलैयां
तू मेरा चंदा 
===========
शैतानी तेरी 
लागे मनोहारी 
ख़ुशी तू  मेरी 
============
मनमोहना 
चंचल चपल तू 
लगता प्यारा 
============
ऑ री पवन  
ले जा मेरा संदेस 
जहाँ सजन 
============
दर्द दे दिया 
अपना बना  कर 
जलता जिया 
============
सजन  तुम 
भूल गए जाकर 
व्याकुल हम 
=============
नहीं है चैन 
आ जाओ ना सजन 
हम बेचैन 
=============
रूठे बलम
की प्रतीक्षा कितनी 
आए ना तुम 
==============
-- 
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हाइकू ------



हाइकू ------
आँख का  तारा 
लूं मैं तेरी बलैयां
तू मेरा चंदा 
=============
शैतानी तेरी 
लागे मनोहारी 
ख़ुशी तू मेरी 
==============
मनमोहना 
चंचल चपल तू 
लगता प्यारा 
==============
ऑ री पवन  
ले जा मेरा संदेस 
जहाँ सजन 
=============
दर्द दे दिया 
अपना बना  कर 
जलता जिया 
============
सजन  तुम 
भूल गए जाकर 
व्याकुल हम 
===========
नहीं है चैन 
आ जाओ ना सजन 
हम बेचैन 
============
रूठे बलम
की प्रतीक्षा कितनी 
आए ना तुम 
============
ज़िन्दगी की 
टेडी मेढ़ी राहों पर
चलते चलते .थक कर 
चकनाचूर 
हो गया पथिक 
लगने लगी 
ज़िन्दगी बोझिल 
आंधी आई ऐसी कि
धूल के गुबार में 
दब गई ज़िन्दगी 
दिल के अरमां 
सूखे पत्तों से 
चरमरा गए 
दिल टूटा 
अपनों का साथ छूटा
बदल गई ज़िन्दगी की
परिभाषा 
छा गई उदासी 
मायूसी और हताशा 
संताप तप्त पथिक 
विकल लाचार बेबस 
बैठा कोस रहा था 
ज़िन्दगी को 
तभी ......
हवा के झोंके का 
शीतल सुखद स्पर्श 
ऐसा मिला कि
सोच बदल गई 
राह बदल गई 
हताशा उदासी 
और मायूसी 
काफूर हो गई 
सोचने लगा वह 
बस बहुत हुआ 
अब ना रुकना है 
ना मायूस होना है 
मुझे चलना है
अनवरत चलना है  
फिर चल पड़ा राही 
उत्साह उमंग 
उल्लास लिए मन में        
ज़िन्दगी सँवारने 
गन्तव्य को  पाने                          

Monday, 13 August 2012

मधुर गान ----------
मिल जाता जब 
मन मानस को
सबल सम्बल
या कर जाती पीर
प्रबल प्रहार
निसृत होते तब
हृदयोद्गार
और
रच जाता तभी
एक मनोहर गान /
मन वीणा के तार
सुर ताल लय में
एक साथ जब
होते झंकृत
छिड़ने लगती
तानें और आलाप
बन जातीं हैं
राग मधुर ,और
थिरकने लगता
मन मयूर
यूँ ही बार बार

प्रमिला आर्य


होती हूँ जब तन्हा तन्हा
पग रखती तुम नन्हा नन्हा 
मन मानस के दरवाजे पर 
होले से सांकल खटकाती 
भूली बिसरी ताज़ा करके 
फिर अतीत की सैर कराती
तब होती हूँ मैं न अकेली 
क्या तुम मेरी सखी सहेली 

मन वीणा के तार छेड़ कर 
झंकृत तुम कर देती हो 
अधरों पर मुस्कान कभी बन 
हर्षित मुझको  कर  देती  हो 
कभी कुरेद कर ज़ख्मों को तुम 
व्यथा व्यथित कर देती हो 
संग में  मेरे हर पल खेली 
क्या तुम मेरी सखी सहेली

पूछूं तुमसे कौन सखी तुम 
रिश्ता नाता क्या है तुमसे 
संग सदा तुम मेरे रह कर  
लुका छिपी का खेल खेलती 
अब तो बतला दो तुम हेली 
क्यूँ करती हो तुम अटखेली  
क्या तुम मेरी सखी सहेली 

हंसकर होले से वो  बोली  
क्यूँ अधीर होती है पगली 
मैं तो तेरी साथिन असली 
साथ सदा मै सबके रहती
चाहे हो कोई  यतिsव्रती 
मैं हूँ तेरी सखी स्मृति-
हाँ  --
होती जब तू तन्हा तन्हा 
पग धरती में नन्हा नन्हा 
तब होती न तुम अकेली 
सच,मैं तेरी सगी सहेली 
प्रमिला आर्य 
बैठ गए हैं नैया में हम पार नदी के जाना हैं 
दिल में ले के आस कि हमको तटबंधों को पाना है 

उठ उठ लहरें मचल रही हैं नैया डगमग डोल रही है 
हो ना विचलित तू मेरे माझी तुझे किनारा पाना है 
पार नदी के जाना है .................................

झंझाओं ने झकझोरा है तूफानों ने आ घेरा है 
धीरज खोना ना मेरे माझी तुझे किनारा पाना है 
पार नदी के जाना है ................................

धाराएँ प्रतिकूल हुई है तेरी दिशाएँ बदल रही है 
धाराओं का रुख तू बदल दे तुझे किनारा पाना है 
पार नदी के जाना है ................................
प्रमिला आर्य 

Sunday, 12 August 2012

ज़िन्दगी की 
टेडी मेढ़ी राहों पर 
चलते चलते .थक कर 
चकनाचूर 
हो गया पथिक 
लगने लगी 
ज़िन्दगी बोझिल 
आंधी आई ऐसी कि
धूल के गुबार में 
दब गई ज़िन्दगी 
दिल के अरमां 
सूखे पत्तों से 
चरमरा गए 
दिल टूटा 
अपनों का साथ छूटा
बदल गई ज़िन्दगी की
परिभाषा 
छा गई उदासी 
मायूसी और हताशा 
संताप तप्त पथिक 
विकल लाचार बेबस 
बैठा कोस रहा था 
ज़िन्दगी को 
तभी ......
हवा के झोंके का 
शीतल सुखद स्पर्श 
ऐसा मिला कि
सोच बदल गई 
राह बदल गई 
हताशा उदासी 
और मायूसी 
काफूर हो गई 
सोचने लगा वह 
बस बहुत हुआ 
अब ना रुकना है 
ना मायूस होना है 
मुझे चलना है
अनवरत चलना है  
फिर चल पड़ा राही 
उत्साह उमंग 
उल्लास लिए मन में        
ज़िन्दगी सँवारने 
गन्तव्य को  पाने    

मित्रता--------------

मन माटी में 
बीज मित्रता का
 आरोपित कर
सद्भावों से अभिसिंचित 
होकर
फूटने लगी कोंपल
कोमल कोमल
शनै :शनै:
पल्लवित होता
पुष्पित होता
सुरभित  करता 
घर आँगन और बस्ती को
लहलहाने लगता है 
 घनीभूत हो 
आल्हादित हो 
पा जाता है 
पूर्ण देह 
देता रहता नेह छाँव 
आश्रय की आशाओं को 
एक नन्हा सा बीज
मित्रता का 
यों ही 
मन की 
माटी पर 
प्रमिला आर्य 





Saturday, 11 August 2012

बेगानों से भरा है यह जहाँ 
साथ कब कोई देता है यहाँ 
कहने को तो कह देते सभी 
वक्त पड़े मुंह मोड़ लेते यहाँ l

सच्चा मित्र वो ------------

सच्चा मित्र वो 
सुख दुःख में साथ 
निभाता सदा 

द्वेष ना वैर 
छल ना छद्म कभी   
करता मीत 

स्वार्थ रहित 
होता है सच्चा मीत 
करता हित 

कृष्ण जन्माष्टमी ---------------


युद्ध  ही  धर्म 
त्याग मोह को पार्थ 
कर तू कर्म 

मीरां दीवानी 
सांवरे रंग राची
प्रेम कहानी 

पी गई मीरां 
तेरे ही भरोसे पे 
विष का प्याला  

कदम्ब- डार 
गोविन्द तेरी लीला 
अपरम्पार 



कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें 
मित्रता ऐसी 
कृष्ण सुदामा जैसी 
होते हितेषी 


गगरि फोरी
ग्वालन संग करे 
माखन चोरी 
=========
रास रचैया 
नटखट कन्हैया 
पकड़ी बैंया  
========= 
माखन चोर 
गोपिन सिरमोर 
है चितचोर 
=========
गोविन्द हरि
दीन दुखी की पीर 
तुमने हरी
===========
 यशोदा माता 
तेरा ये नंदलाला 
हमें सताता 

देश भक्ति --------------

देश भक्ति ----------------
१.आज़ादी पर्व
 स्वतंत्र हुआ देश 
 हमें है गर्व 
===========
२. बोस आज़ाद 
   थे तिलक भगत 
   शान -ए- हिंद 
===========
३.वीर महान
 भारत माँकी शान 
 हुवे  कुर्बान 
=============
४.नहीं भूलेंगें 
प्राणोत्सर्ग तुम्हारा 
याद रखेंगें 
============
५.धन्य वो माँ 
 जन्मा वीर सपूत 
 उसे नमन 
=============
६.भेजे रण में 
  माँ -पत्नी -बहन 
  धन्य हैं वो 
७. गर्व है मुझे 
   खाई गोली सीने पे 
   नहीं पीठ पे 
=============
८.तेरा उत्सर्ग 
   याद रहेगा सदा 
   गया तू स्वर्ग 
==============
९..नत मस्तक 
  अनाम शहीदों को 
  करते हम 
============
१०.देश भक्त तू 
  वीर सपूत माँ का 
  शान भी है तू 
=============
११.स्वतंत्रता की 
    वेदी में दी आहुति 
    निज प्राणों की 
==============
१२..जा रहा हूँ मैं 
     माँ की शान तुम्हारे 
     सौंप हाथ में 
==============
१३..नहीं धन की 
    न थी चाह यश की 
   थी आज़ादी की 
==============
१४.कामना मेरी 
 आँख उठाके कभी 
 देखे न बेरी 
==============
१५.रोती है आत्मा 
    महान संस्कृति का 
    हो रहा खात्मा
==============
१६ .भाव उदात्त 
    विश्व बन्धुत्वा भरा 
    हैं गर्वोन्मत्त 
===============
१७.जन्मभूमि ये 
    स्वर्ग से भी सुन्दर 
   आओ पूजें 
================
१८.लगा भाल पे 
   रोली अक्षत टीका 
   भेजे रण में
===============


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Tuesday, 7 August 2012

व्यथा की घनघोर घटाएँ जब मंडराएंगी 
घनीभूत हो मन उद्वेलित  कर जाएँगी
उमड़ घुमड़ कर उमड़ेंगें  जब भाव हृदय में 
कोरे कागज़ पर तब गीत उकर कर आएँगे /
प्रमिला आर्य 

तू ज़रा तो मुस्कुरा ले ................

तू ज़रा तो मुस्कुरा ले ................
ग़र तू पाना चाहे मंजिल आशा के तू दीप जला ले 
छोड़ हताशा दिल से अपने तू ज़रा तो मुस्कुरा ले /

आंधी तूफाँ चाहे आयें 
हो ना विचलित तू ज़रा भी
लक्ष्य  ग़र तूने हो साधा  
चलना सिखलाती है बाधा 
तू लगन की लौ लागले 
तू ज़रा तो ..................

कर्म में विश्वास हो संकल्प 
में दृढ़ता रही तो 
रोक पाएगा ना तूफाँ 
छाये चाहे तिमिर घनेरा 
मुशकिलों को गले लगा ले 
तू ज़रा तो .................

कार्य कितना भी कठिन हो 
मार्ग जितना भी जटिल हो 
धैर्य  अपना खो ना दे ग़र
सफलता पग चूम लेगी 
कर्म की तू अगन जला ले 
तू ज़रा तो ...................

पथ में कांटे य कंकर हो 
पग में चाहे शूल चुभे हों 
पीड़ा का अहसास ना ग़र हो 
मंजिल तेरी दूर नहीं है 
तू ज़रा तो .................

लहरों से टकराना जाने 
धाराएँ जिसे रोक ना पायें 
तूफाँ से जो हार ना मानें 
तरणि तट को पा जाएगी 
हिम्मत की पतवार तू ले ले 
तू ज़रा तो ............

गुरु........

ज्ञान -सुमन सौरभ से गुरुजन 
जग जन को सुरभित करते हैं 
ओजस्वी वाणी प्रेरण से 
मार्ग प्रदर्शित करते हैं 
ज्ञानदीप की जोत जलाकर 
अज्ञान तिमिर को हरते हैं 
ऐसे गुरुजन के चरणों में 
हम नमन करते हैं 
प्रमिला आर्य 
बोली  जाका मुख सुणु, पूछूँ झट से गांव l
पीहरिया रो जाण के, जागे आदर भाव  ll

ओल्यू आवे रात दिन, आंगनियाँ रा खेल l
थां बिन बाबुल छूट ग्या, पिहरिया रा गेल ll

बातां करता बैठ के, आंगनिया मां खाट l
मनसुं बिसरूं ना कदी, मायड़ थारी बाट  ll

मेनत करती रात दन, तनिक नहीं बिसराम l 
तू तो माँ बस जाणती, है आराम हराम ll
                                    -
मात-पिता सम कोउ नहीं, आवत है ये बिचार l
माँ गयी मौसाल गयो, पिता गए परिवार ll 
                                         प्रमिला आर्य

vचल तू राही


चल तू राही 

चलने से क्यूँ घबराता है ,
इन राहों का तू है राही l
पास बहुत है मंजिल तेरी,
 अविचल हो कर चल तू राही ll

बिखरें हों गर पथ में कांटे ,
शूल चुभन से रुक मत पाथी l
फूल खिलें हों गर राहों में ,
हँसते हँसते चल तू राही  ll
पास बहुत है ...............

लहरों के तांडव नर्तन में ,
धीरज धर बन्जा तू मांझी l
धारा गर अनुकूल रहे तो ,
मौज उड़ाता चल तू राही ll
पास बहुत है ..............

घनघोर घटाएँ  तूफां आएं ,
लड़खड़ा पर चल तू राही l
शीतल मंद पवन झोंके हों,
 गुनगुनाता चल तू राही  ll
पास बहुत है ...............
प्रमिला आर्य 




सम्बल तुम हो ......


 सम्बल  तुम हो 
सबलों के संबल बहुतेरे पर निर्बल के संबल तुम हो l
शीश हाथ धर संकट हरते मनवा धीर बंधाते हो ll

आँधी तूफां की झंझा ने जब जब भी झकझोरा हो l
विपदाओं के भाँवर में जब कश्ती डगमग डोली हो l
बन  खेवैया स्वामी  तुम ही  नैया पार लगाते  हो   ll 
शीश हाथ धर ........................................

कोई  जावे वृंदावन औ कोई  काशी मथुरा जावे   l
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चार धाम कोई करआवे l  
कर्तव्यों के पालन में मुझे तीर्थ धाम करवाते हो ll
शीश हाथ धर ............................................

त्रय -ताप-तप्त आकुल व्याकुल  जन ने टेर लगाई हो  l
दुःख की दावानल ने स्वामी जब भी अगन लगाई हो l
शीतल  बौछारों  से प्रभु  जी शीतलता   पहुंचाते  हो  ll
शीश हाथ धर ..............................................

मोह माया  जंजालों में जब  मनवा  जग में भटका  हो  l
राह नहीं मिलती  जब  कोई  तुम ही  राह दिखाते हो  l
करुणा कर करूणानिधि तुम ही क्लेश कलुष मिटाते हो ll
शीश हाथ धर ....................................................
प्रमिला आर्य 



पणिहारियाँ

यह गीत बचपन की उन स्मृतियों के आधार पर लिखा है 
जब मेरी झालरापाटन नगरी में नल नहीं थे और
 पानी कुवे से भर कर लाना पड़ता था l जब  हमारे घर की  कुई पर
 मोहल्ले की  काकी जी भाभी जी का पानी भरना याद आता है तो
मेरा दिल कुछ  यूँ गुनगुनाता है -


                  पणिहारियाँ              ~~~~~~~~~~~~~
माथे ऊपर मेल बेवड़ा रास मूंज की कांधे डाल्याँ 
पणिहारियाँ ये पाणी चाली  पनघट पे ये पाणी चाली रे

तड़के तड़के उठी गौरडियां 
आंगणियां में बैठी अर वे
लागी चमकावण गागरिया
फाणीड़ो भरबा  ने चाली
पणिहारियाँ ये फाणी चाली
लेर गागरिया फाणी चाली रे

माथे रखडी नाकां नथणि
कानां झुमका गले खुगाली
सतरंगी वे औड चुनरिया
फाणीड़ो  बरवा ने चाली
पणिहारियाँ ये फाणी चाली
औड चुनरिया फाणी चाली रे

आँख्यां मां काजल भाल पे टिंकी
मेंदी रचाई मान्ग्याँ भरली
कर सोला सिणगार गौरडियां
फाणी ड़ो भरबा ने   चाली
पणहारियाँ ये फाणी चाली ll
कर सिणगारियां फाणी चाली रे

हाथां मां चुडला खनखन खनके
रुणझुन रुनझुन झांझर झनके
मंदी स़ी मुस्कान बखेरियां
फाणी ड़ो भरबा  ने चाली
पणहारियां ये फाणी चाली
हंसती हंसाती फाणी चाली रे

सीता गीता सुगना रुकमा
आओ री सखियाँ फाणी चाल्याँ
ले ले गागर सगली सहेलियां
फाणी ड़ो भरबा  ने चाली
पणहारियां ये फाणी चाली
हिलमिल सखियाँ फाणी चाली रे

कुवे पाल पे मेल बेवड़ा
बाताँ वे बतियावण लागी
सुख दुःख सगला बाटण लागी
फाणी ड़ो भरबा  ने चाली
पणिहारियां ये फाणी चाली
बाताँ करती फाणी चाली रे

माथे ऊपर मेल बेवड़ा ...............
                           - प्रमिला आर्य 

फूल से.......

फूल से                            
                   की

देख कर ज़िंदादिली
पूछा मनुज ने फूल से 
वन -उपवन क्यूँ महकाते हो 
घिर के  भी तुम शूल से 
मुस्काया,फिर होले से 
फूल बोला यों मनुज से 
काँटों से क्यूँ मैं घबराऊं 
मैं तो मेरा धर्म निभाऊं 
                    - प्रमिला 



फूल फूल से द्वेष है रखता  कलियाँ बागी  हो गई 
रात के अंधियारों से डर के सूनी गलियां सो गईं 
दहशतगर्दों की दहशत से मानवता की जड़ें हिल गई 
प्यार दया करुणा ममता की पन्नों पर बातें रह गई 
प्रमिला आर्य

प्रकृति का तांडव देख ऐसा लगा -

प्रकृति का तांडव देख  ऐसा लगा -

देखा सुन्दर  कुदरत  को  तो हैरां हो गए हम ,
लीलाधर की लीला पर नतमस्तक हो गए हम ,
मंज़र बर्बादी  का देखा हमने जब  इन्सां का ,
कैसा ये इन्साफ है उसका लगे सोचने हम .
प्रमिला आर्य       
ज़िन्दगी की 
टेडी मेढ़ी राहों पर 
चलते चलते .थक कर 
चकनाचूर 
हो गया पथिक 
लगने लगी 
ज़िन्दगी बोझिल 
आंधी आई ऐसी कि
धूल के गुबार में 
दब गई ज़िन्दगी 
दिल के अरमां 
सूखे पत्तों से 
चरमरा गए 
दिल टूटा 
अपनों का साथ छूटा
बदल गई ज़िन्दगी की
परिभाषा 
छा गई उदासी 
मायूसी और हताशा 
संताप तप्त पथिक 
विकल लाचार बेबस 
बैठा कोस रहा था 
ज़िन्दगी को 
तभी ......
हवा के झोंके का 
शीतल सुखद स्पर्श 
ऐसा मिला कि
सोच बदल गई 
राह बदल गई 
हताशा उदासी 
और मायूसी 
काफूर हो गई 
सोचने लगा वह 
बस बहुत हुआ 
अब ना रुकना है 
ना मायूस होना है 
मुझे चलना है
अनवरत चलना है 
अपने लिए जीना है 
वक्त की मार ne
मारा है अब तक 
अब कुछ कर 
दिखाना है वक्त को 
फिर चल पड़ा राही 
उत्साह उमंग 
उल्लास लिए मन में        
ज़िन्दगी सँवारने 
गन्तव्य को  पाने                   
समर्पण --- 
स्नेह प्रपूरित 
दीप का
स्नेह मिला
सम्बल मिला 
आश्रय मिला 
एक लघु स़ी 
कोमल स़ी 
बाती को तो,
 हो समर्पित
ज्योतित हुई      
और
तिमिराच्छादित
लोक को
कर दिया
प्रभा - प्रभासित /
कहने लगे हम
दीप जल गया
आलोक हो गया ,
जला कर
अस्तित्व अपना ....
दिलाई पहचान
दीप को ./,
यों .....
स्नेह सम्बल आश्रय का
प्रतिदान बाती ने दिया
हो समर्पित
बुझ गई फिर
लघु स़ी बाती //
हुई  समर्पित
लघु स़ी बाती
प्रमिला आर्य 
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जन्मदिन की शुभकामनाएं ......

जन्मदिन की शुभकामनाएं 
दिन दूनी निशि चौगुनी ,करें उन्नति आप 
मंगलमय है  कामना ,बढ़ता रहे प्रताप /
शब्द वर्ण विन्यास से ,करते वाणी विलास  
रचनायें रचते रहें ,ऐसी है अभिलास /
सुख समृद्धि सम्पदा , रहे हमेशा साथ 
शीश रहे नित आपके, माँ वागीशा हाथ /
प्रमिला आर्य 


फूलें फलें उन्नति करें खुशहाली हो जीवन में 
जन्मदिन के अवसर पर ये कामना करती हूँ मैं /
फूलों से नित बाग़ सजा हो  खुशबू से महके अंगना 
रबड़ी बनाऊं आज मैं ग़र ले आओ संग में सजना/
प्रमिला आर्य 

साहित्य संगीत और कला का 
माँ शारदे दे वरदान 
सतत साधना आराधन से 
पूरे हों तेरे अरमान  /
स्वस्थ सदा सुखी रहो तुम 
फूल खिले हों गुलशन में 
महिमा की महिमा बढे
नित खुशियाँ हो दामन में 
जन्मदिन के अवसर पर मैं 
कामना करती हूँ ये l
प्रमिला आर्य 

मानस में चिन्तन मनन,और लेखनी हाथ l
रचनाधर्मी  के सदा , मात शारदे  साथ ll

गुलदस्ता है हाथ में , भाभी जी हैं पास
तैलंग जी इक प्रश्न है ,अवसर है क्या ख़ास

स्वप्न------

स्वप्न------
सपनो के महल 
बनाये थे जो कभी 
बिखर गए  
घरौंदों के मानिंद ,
सपने सलोने 
जो देखे थे कभी 
बिखर गए 
टूट कर कांच की तरह ,
स्वप्न बिखरे टूटे ,
ध्वस्त हुवे तो क्या ?
हम ..
फिर से देखेंगे स्वप्न 
फूलों की तरह 
सुकोमल 
सुन्दर और मनोहर 
जो खिलेंगे फूलेंगे 
काँटों में रह कर भी  
महकाएँगे 
हमारी आशाओं के उपवन 
और -अंतत:
दे जायेंगे 
सुनहरे भविष्य के 
ठोस सुदृढ़ उपजाऊ 
नव बीज 
इस युग के 
बीज दे जाएंगे 
नव निर्माण के 
पुनर्निर्माण के 

काले बादल -------------

काले बादल 
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प्यासी  धरती की प्यास बुझाने 
आये काले काले बादल
गरज गरज कर मचलमचल कर   
बरसे काले काले बादल 
शोले बरसाते गर्वित रवि का 
दम्भ  मिटाने आये बादल 
ताप तप्त जगतीतल भर का 
ताप मिटाने आये बादल                
पीताभ हुआ धरा का अँचल
धानी चूनर लाये बादल 
प्रमिला आर्य 
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प्यासी  धरती की प्यास बुझाने 
आये काले काले बादल
गरज गरज कर मचलमचल कर   
बरसे काले काले बादल 
शोले बरसाते गर्वित रवि का 
दम्भ  मिटाने आये बादल 
ताप तप्त जगतीतल भर का 
ताप मिटाने आये बादल                
पीताभ हुआ धरा का अँचल
धानी चूनर लाये बादल 
प्रमिला आर्य