सम्बल तुम हो
सबलों के संबल बहुतेरे पर निर्बल के संबल तुम हो l
शीश हाथ धर संकट हरते मनवा धीर बंधाते हो ll
आँधी तूफां की झंझा ने जब जब भी झकझोरा हो l
विपदाओं के भाँवर में जब कश्ती डगमग डोली हो l
बन खेवैया स्वामी तुम ही नैया पार लगाते हो ll
शीश हाथ धर .............................. ..........
कोई जावे वृंदावन औ कोई काशी मथुरा जावे l
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चार धाम कोई करआवे l
कर्तव्यों के पालन में मुझे तीर्थ धाम करवाते हो ll
शीश हाथ धर .............................. ..............
त्रय -ताप-तप्त आकुल व्याकुल जन ने टेर लगाई हो l
दुःख की दावानल ने स्वामी जब भी अगन लगाई हो l
शीतल बौछारों से प्रभु जी शीतलता पहुंचाते हो ll
शीश हाथ धर .............................. ................
मोह माया जंजालों में जब मनवा जग में भटका हो l
राह नहीं मिलती जब कोई तुम ही राह दिखाते हो l
करुणा कर करूणानिधि तुम ही क्लेश कलुष मिटाते हो ll
शीश हाथ धर .............................. ......................
प्रमिला आर्य
No comments:
Post a Comment