Tuesday, 7 August 2012

स्वप्न------

स्वप्न------
सपनो के महल 
बनाये थे जो कभी 
बिखर गए  
घरौंदों के मानिंद ,
सपने सलोने 
जो देखे थे कभी 
बिखर गए 
टूट कर कांच की तरह ,
स्वप्न बिखरे टूटे ,
ध्वस्त हुवे तो क्या ?
हम ..
फिर से देखेंगे स्वप्न 
फूलों की तरह 
सुकोमल 
सुन्दर और मनोहर 
जो खिलेंगे फूलेंगे 
काँटों में रह कर भी  
महकाएँगे 
हमारी आशाओं के उपवन 
और -अंतत:
दे जायेंगे 
सुनहरे भविष्य के 
ठोस सुदृढ़ उपजाऊ 
नव बीज 
इस युग के 
बीज दे जाएंगे 
नव निर्माण के 
पुनर्निर्माण के 

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