चल तू राही
चलने से क्यूँ घबराता है ,
इन राहों का तू है राही l
पास बहुत है मंजिल तेरी,
अविचल हो कर चल तू राही ll
बिखरें हों गर पथ में कांटे ,
शूल चुभन से रुक मत पाथी l
फूल खिलें हों गर राहों में ,
हँसते हँसते चल तू राही ll
पास बहुत है ...............
लहरों के तांडव नर्तन में ,
धीरज धर बन्जा तू मांझी l
धारा गर अनुकूल रहे तो ,
मौज उड़ाता चल तू राही ll
पास बहुत है ..............
घनघोर घटाएँ तूफां आएं ,
लड़खड़ा पर चल तू राही l
शीतल मंद पवन झोंके हों,
गुनगुनाता चल तू राही ll
पास बहुत है ...............
प्रमिला आर्य
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