Tuesday, 7 August 2012

ज़िन्दगी की 
टेडी मेढ़ी राहों पर 
चलते चलते .थक कर 
चकनाचूर 
हो गया पथिक 
लगने लगी 
ज़िन्दगी बोझिल 
आंधी आई ऐसी कि
धूल के गुबार में 
दब गई ज़िन्दगी 
दिल के अरमां 
सूखे पत्तों से 
चरमरा गए 
दिल टूटा 
अपनों का साथ छूटा
बदल गई ज़िन्दगी की
परिभाषा 
छा गई उदासी 
मायूसी और हताशा 
संताप तप्त पथिक 
विकल लाचार बेबस 
बैठा कोस रहा था 
ज़िन्दगी को 
तभी ......
हवा के झोंके का 
शीतल सुखद स्पर्श 
ऐसा मिला कि
सोच बदल गई 
राह बदल गई 
हताशा उदासी 
और मायूसी 
काफूर हो गई 
सोचने लगा वह 
बस बहुत हुआ 
अब ना रुकना है 
ना मायूस होना है 
मुझे चलना है
अनवरत चलना है 
अपने लिए जीना है 
वक्त की मार ne
मारा है अब तक 
अब कुछ कर 
दिखाना है वक्त को 
फिर चल पड़ा राही 
उत्साह उमंग 
उल्लास लिए मन में        
ज़िन्दगी सँवारने 
गन्तव्य को  पाने                   

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