Tuesday, 7 August 2012

बोली  जाका मुख सुणु, पूछूँ झट से गांव l
पीहरिया रो जाण के, जागे आदर भाव  ll

ओल्यू आवे रात दिन, आंगनियाँ रा खेल l
थां बिन बाबुल छूट ग्या, पिहरिया रा गेल ll

बातां करता बैठ के, आंगनिया मां खाट l
मनसुं बिसरूं ना कदी, मायड़ थारी बाट  ll

मेनत करती रात दन, तनिक नहीं बिसराम l 
तू तो माँ बस जाणती, है आराम हराम ll
                                    -
मात-पिता सम कोउ नहीं, आवत है ये बिचार l
माँ गयी मौसाल गयो, पिता गए परिवार ll 
                                         प्रमिला आर्य

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