बोली जाका मुख सुणु, पूछूँ झट से गांव l
पीहरिया रो जाण के, जागे आदर भाव ll
ओल्यू आवे रात दिन, आंगनियाँ रा खेल l
थां बिन बाबुल छूट ग्या, पिहरिया रा गेल ll
बातां करता बैठ के, आंगनिया मां खाट l
मनसुं बिसरूं ना कदी, मायड़ थारी बाट ll
मेनत करती रात दन, तनिक नहीं बिसराम l
तू तो माँ बस जाणती, है आराम हराम ll
-
मात-पिता सम कोउ नहीं, आवत है ये बिचार l
माँ गयी मौसाल गयो, पिता गए परिवार ll
प्रमिला आर्य
पीहरिया रो जाण के, जागे आदर भाव ll
ओल्यू आवे रात दिन, आंगनियाँ रा खेल l
थां बिन बाबुल छूट ग्या, पिहरिया रा गेल ll
बातां करता बैठ के, आंगनिया मां खाट l
मनसुं बिसरूं ना कदी, मायड़ थारी बाट ll
मेनत करती रात दन, तनिक नहीं बिसराम l
तू तो माँ बस जाणती, है आराम हराम ll
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मात-पिता सम कोउ नहीं, आवत है ये बिचार l
माँ गयी मौसाल गयो, पिता गए परिवार ll
प्रमिला आर्य
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