Monday, 13 August 2012

मधुर गान ----------
मिल जाता जब 
मन मानस को
सबल सम्बल
या कर जाती पीर
प्रबल प्रहार
निसृत होते तब
हृदयोद्गार
और
रच जाता तभी
एक मनोहर गान /
मन वीणा के तार
सुर ताल लय में
एक साथ जब
होते झंकृत
छिड़ने लगती
तानें और आलाप
बन जातीं हैं
राग मधुर ,और
थिरकने लगता
मन मयूर
यूँ ही बार बार

प्रमिला आर्य


होती हूँ जब तन्हा तन्हा
पग रखती तुम नन्हा नन्हा 
मन मानस के दरवाजे पर 
होले से सांकल खटकाती 
भूली बिसरी ताज़ा करके 
फिर अतीत की सैर कराती
तब होती हूँ मैं न अकेली 
क्या तुम मेरी सखी सहेली 

मन वीणा के तार छेड़ कर 
झंकृत तुम कर देती हो 
अधरों पर मुस्कान कभी बन 
हर्षित मुझको  कर  देती  हो 
कभी कुरेद कर ज़ख्मों को तुम 
व्यथा व्यथित कर देती हो 
संग में  मेरे हर पल खेली 
क्या तुम मेरी सखी सहेली

पूछूं तुमसे कौन सखी तुम 
रिश्ता नाता क्या है तुमसे 
संग सदा तुम मेरे रह कर  
लुका छिपी का खेल खेलती 
अब तो बतला दो तुम हेली 
क्यूँ करती हो तुम अटखेली  
क्या तुम मेरी सखी सहेली 

हंसकर होले से वो  बोली  
क्यूँ अधीर होती है पगली 
मैं तो तेरी साथिन असली 
साथ सदा मै सबके रहती
चाहे हो कोई  यतिsव्रती 
मैं हूँ तेरी सखी स्मृति-
हाँ  --
होती जब तू तन्हा तन्हा 
पग धरती में नन्हा नन्हा 
तब होती न तुम अकेली 
सच,मैं तेरी सगी सहेली 
प्रमिला आर्य 
बैठ गए हैं नैया में हम पार नदी के जाना हैं 
दिल में ले के आस कि हमको तटबंधों को पाना है 

उठ उठ लहरें मचल रही हैं नैया डगमग डोल रही है 
हो ना विचलित तू मेरे माझी तुझे किनारा पाना है 
पार नदी के जाना है .................................

झंझाओं ने झकझोरा है तूफानों ने आ घेरा है 
धीरज खोना ना मेरे माझी तुझे किनारा पाना है 
पार नदी के जाना है ................................

धाराएँ प्रतिकूल हुई है तेरी दिशाएँ बदल रही है 
धाराओं का रुख तू बदल दे तुझे किनारा पाना है 
पार नदी के जाना है ................................
प्रमिला आर्य 

Sunday, 12 August 2012

ज़िन्दगी की 
टेडी मेढ़ी राहों पर 
चलते चलते .थक कर 
चकनाचूर 
हो गया पथिक 
लगने लगी 
ज़िन्दगी बोझिल 
आंधी आई ऐसी कि
धूल के गुबार में 
दब गई ज़िन्दगी 
दिल के अरमां 
सूखे पत्तों से 
चरमरा गए 
दिल टूटा 
अपनों का साथ छूटा
बदल गई ज़िन्दगी की
परिभाषा 
छा गई उदासी 
मायूसी और हताशा 
संताप तप्त पथिक 
विकल लाचार बेबस 
बैठा कोस रहा था 
ज़िन्दगी को 
तभी ......
हवा के झोंके का 
शीतल सुखद स्पर्श 
ऐसा मिला कि
सोच बदल गई 
राह बदल गई 
हताशा उदासी 
और मायूसी 
काफूर हो गई 
सोचने लगा वह 
बस बहुत हुआ 
अब ना रुकना है 
ना मायूस होना है 
मुझे चलना है
अनवरत चलना है  
फिर चल पड़ा राही 
उत्साह उमंग 
उल्लास लिए मन में        
ज़िन्दगी सँवारने 
गन्तव्य को  पाने    

मित्रता--------------

मन माटी में 
बीज मित्रता का
 आरोपित कर
सद्भावों से अभिसिंचित 
होकर
फूटने लगी कोंपल
कोमल कोमल
शनै :शनै:
पल्लवित होता
पुष्पित होता
सुरभित  करता 
घर आँगन और बस्ती को
लहलहाने लगता है 
 घनीभूत हो 
आल्हादित हो 
पा जाता है 
पूर्ण देह 
देता रहता नेह छाँव 
आश्रय की आशाओं को 
एक नन्हा सा बीज
मित्रता का 
यों ही 
मन की 
माटी पर 
प्रमिला आर्य 





Saturday, 11 August 2012

बेगानों से भरा है यह जहाँ 
साथ कब कोई देता है यहाँ 
कहने को तो कह देते सभी 
वक्त पड़े मुंह मोड़ लेते यहाँ l

सच्चा मित्र वो ------------

सच्चा मित्र वो 
सुख दुःख में साथ 
निभाता सदा 

द्वेष ना वैर 
छल ना छद्म कभी   
करता मीत 

स्वार्थ रहित 
होता है सच्चा मीत 
करता हित 

कृष्ण जन्माष्टमी ---------------


युद्ध  ही  धर्म 
त्याग मोह को पार्थ 
कर तू कर्म 

मीरां दीवानी 
सांवरे रंग राची
प्रेम कहानी 

पी गई मीरां 
तेरे ही भरोसे पे 
विष का प्याला  

कदम्ब- डार 
गोविन्द तेरी लीला 
अपरम्पार 



कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें 
मित्रता ऐसी 
कृष्ण सुदामा जैसी 
होते हितेषी 


गगरि फोरी
ग्वालन संग करे 
माखन चोरी 
=========
रास रचैया 
नटखट कन्हैया 
पकड़ी बैंया  
========= 
माखन चोर 
गोपिन सिरमोर 
है चितचोर 
=========
गोविन्द हरि
दीन दुखी की पीर 
तुमने हरी
===========
 यशोदा माता 
तेरा ये नंदलाला 
हमें सताता 

देश भक्ति --------------

देश भक्ति ----------------
१.आज़ादी पर्व
 स्वतंत्र हुआ देश 
 हमें है गर्व 
===========
२. बोस आज़ाद 
   थे तिलक भगत 
   शान -ए- हिंद 
===========
३.वीर महान
 भारत माँकी शान 
 हुवे  कुर्बान 
=============
४.नहीं भूलेंगें 
प्राणोत्सर्ग तुम्हारा 
याद रखेंगें 
============
५.धन्य वो माँ 
 जन्मा वीर सपूत 
 उसे नमन 
=============
६.भेजे रण में 
  माँ -पत्नी -बहन 
  धन्य हैं वो 
७. गर्व है मुझे 
   खाई गोली सीने पे 
   नहीं पीठ पे 
=============
८.तेरा उत्सर्ग 
   याद रहेगा सदा 
   गया तू स्वर्ग 
==============
९..नत मस्तक 
  अनाम शहीदों को 
  करते हम 
============
१०.देश भक्त तू 
  वीर सपूत माँ का 
  शान भी है तू 
=============
११.स्वतंत्रता की 
    वेदी में दी आहुति 
    निज प्राणों की 
==============
१२..जा रहा हूँ मैं 
     माँ की शान तुम्हारे 
     सौंप हाथ में 
==============
१३..नहीं धन की 
    न थी चाह यश की 
   थी आज़ादी की 
==============
१४.कामना मेरी 
 आँख उठाके कभी 
 देखे न बेरी 
==============
१५.रोती है आत्मा 
    महान संस्कृति का 
    हो रहा खात्मा
==============
१६ .भाव उदात्त 
    विश्व बन्धुत्वा भरा 
    हैं गर्वोन्मत्त 
===============
१७.जन्मभूमि ये 
    स्वर्ग से भी सुन्दर 
   आओ पूजें 
================
१८.लगा भाल पे 
   रोली अक्षत टीका 
   भेजे रण में
===============


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Tuesday, 7 August 2012

व्यथा की घनघोर घटाएँ जब मंडराएंगी 
घनीभूत हो मन उद्वेलित  कर जाएँगी
उमड़ घुमड़ कर उमड़ेंगें  जब भाव हृदय में 
कोरे कागज़ पर तब गीत उकर कर आएँगे /
प्रमिला आर्य 

तू ज़रा तो मुस्कुरा ले ................

तू ज़रा तो मुस्कुरा ले ................
ग़र तू पाना चाहे मंजिल आशा के तू दीप जला ले 
छोड़ हताशा दिल से अपने तू ज़रा तो मुस्कुरा ले /

आंधी तूफाँ चाहे आयें 
हो ना विचलित तू ज़रा भी
लक्ष्य  ग़र तूने हो साधा  
चलना सिखलाती है बाधा 
तू लगन की लौ लागले 
तू ज़रा तो ..................

कर्म में विश्वास हो संकल्प 
में दृढ़ता रही तो 
रोक पाएगा ना तूफाँ 
छाये चाहे तिमिर घनेरा 
मुशकिलों को गले लगा ले 
तू ज़रा तो .................

कार्य कितना भी कठिन हो 
मार्ग जितना भी जटिल हो 
धैर्य  अपना खो ना दे ग़र
सफलता पग चूम लेगी 
कर्म की तू अगन जला ले 
तू ज़रा तो ...................

पथ में कांटे य कंकर हो 
पग में चाहे शूल चुभे हों 
पीड़ा का अहसास ना ग़र हो 
मंजिल तेरी दूर नहीं है 
तू ज़रा तो .................

लहरों से टकराना जाने 
धाराएँ जिसे रोक ना पायें 
तूफाँ से जो हार ना मानें 
तरणि तट को पा जाएगी 
हिम्मत की पतवार तू ले ले 
तू ज़रा तो ............

गुरु........

ज्ञान -सुमन सौरभ से गुरुजन 
जग जन को सुरभित करते हैं 
ओजस्वी वाणी प्रेरण से 
मार्ग प्रदर्शित करते हैं 
ज्ञानदीप की जोत जलाकर 
अज्ञान तिमिर को हरते हैं 
ऐसे गुरुजन के चरणों में 
हम नमन करते हैं 
प्रमिला आर्य 
बोली  जाका मुख सुणु, पूछूँ झट से गांव l
पीहरिया रो जाण के, जागे आदर भाव  ll

ओल्यू आवे रात दिन, आंगनियाँ रा खेल l
थां बिन बाबुल छूट ग्या, पिहरिया रा गेल ll

बातां करता बैठ के, आंगनिया मां खाट l
मनसुं बिसरूं ना कदी, मायड़ थारी बाट  ll

मेनत करती रात दन, तनिक नहीं बिसराम l 
तू तो माँ बस जाणती, है आराम हराम ll
                                    -
मात-पिता सम कोउ नहीं, आवत है ये बिचार l
माँ गयी मौसाल गयो, पिता गए परिवार ll 
                                         प्रमिला आर्य

vचल तू राही


चल तू राही 

चलने से क्यूँ घबराता है ,
इन राहों का तू है राही l
पास बहुत है मंजिल तेरी,
 अविचल हो कर चल तू राही ll

बिखरें हों गर पथ में कांटे ,
शूल चुभन से रुक मत पाथी l
फूल खिलें हों गर राहों में ,
हँसते हँसते चल तू राही  ll
पास बहुत है ...............

लहरों के तांडव नर्तन में ,
धीरज धर बन्जा तू मांझी l
धारा गर अनुकूल रहे तो ,
मौज उड़ाता चल तू राही ll
पास बहुत है ..............

घनघोर घटाएँ  तूफां आएं ,
लड़खड़ा पर चल तू राही l
शीतल मंद पवन झोंके हों,
 गुनगुनाता चल तू राही  ll
पास बहुत है ...............
प्रमिला आर्य 




सम्बल तुम हो ......


 सम्बल  तुम हो 
सबलों के संबल बहुतेरे पर निर्बल के संबल तुम हो l
शीश हाथ धर संकट हरते मनवा धीर बंधाते हो ll

आँधी तूफां की झंझा ने जब जब भी झकझोरा हो l
विपदाओं के भाँवर में जब कश्ती डगमग डोली हो l
बन  खेवैया स्वामी  तुम ही  नैया पार लगाते  हो   ll 
शीश हाथ धर ........................................

कोई  जावे वृंदावन औ कोई  काशी मथुरा जावे   l
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चार धाम कोई करआवे l  
कर्तव्यों के पालन में मुझे तीर्थ धाम करवाते हो ll
शीश हाथ धर ............................................

त्रय -ताप-तप्त आकुल व्याकुल  जन ने टेर लगाई हो  l
दुःख की दावानल ने स्वामी जब भी अगन लगाई हो l
शीतल  बौछारों  से प्रभु  जी शीतलता   पहुंचाते  हो  ll
शीश हाथ धर ..............................................

मोह माया  जंजालों में जब  मनवा  जग में भटका  हो  l
राह नहीं मिलती  जब  कोई  तुम ही  राह दिखाते हो  l
करुणा कर करूणानिधि तुम ही क्लेश कलुष मिटाते हो ll
शीश हाथ धर ....................................................
प्रमिला आर्य 



पणिहारियाँ

यह गीत बचपन की उन स्मृतियों के आधार पर लिखा है 
जब मेरी झालरापाटन नगरी में नल नहीं थे और
 पानी कुवे से भर कर लाना पड़ता था l जब  हमारे घर की  कुई पर
 मोहल्ले की  काकी जी भाभी जी का पानी भरना याद आता है तो
मेरा दिल कुछ  यूँ गुनगुनाता है -


                  पणिहारियाँ              ~~~~~~~~~~~~~
माथे ऊपर मेल बेवड़ा रास मूंज की कांधे डाल्याँ 
पणिहारियाँ ये पाणी चाली  पनघट पे ये पाणी चाली रे

तड़के तड़के उठी गौरडियां 
आंगणियां में बैठी अर वे
लागी चमकावण गागरिया
फाणीड़ो भरबा  ने चाली
पणिहारियाँ ये फाणी चाली
लेर गागरिया फाणी चाली रे

माथे रखडी नाकां नथणि
कानां झुमका गले खुगाली
सतरंगी वे औड चुनरिया
फाणीड़ो  बरवा ने चाली
पणिहारियाँ ये फाणी चाली
औड चुनरिया फाणी चाली रे

आँख्यां मां काजल भाल पे टिंकी
मेंदी रचाई मान्ग्याँ भरली
कर सोला सिणगार गौरडियां
फाणी ड़ो भरबा ने   चाली
पणहारियाँ ये फाणी चाली ll
कर सिणगारियां फाणी चाली रे

हाथां मां चुडला खनखन खनके
रुणझुन रुनझुन झांझर झनके
मंदी स़ी मुस्कान बखेरियां
फाणी ड़ो भरबा  ने चाली
पणहारियां ये फाणी चाली
हंसती हंसाती फाणी चाली रे

सीता गीता सुगना रुकमा
आओ री सखियाँ फाणी चाल्याँ
ले ले गागर सगली सहेलियां
फाणी ड़ो भरबा  ने चाली
पणहारियां ये फाणी चाली
हिलमिल सखियाँ फाणी चाली रे

कुवे पाल पे मेल बेवड़ा
बाताँ वे बतियावण लागी
सुख दुःख सगला बाटण लागी
फाणी ड़ो भरबा  ने चाली
पणिहारियां ये फाणी चाली
बाताँ करती फाणी चाली रे

माथे ऊपर मेल बेवड़ा ...............
                           - प्रमिला आर्य 

फूल से.......

फूल से                            
                   की

देख कर ज़िंदादिली
पूछा मनुज ने फूल से 
वन -उपवन क्यूँ महकाते हो 
घिर के  भी तुम शूल से 
मुस्काया,फिर होले से 
फूल बोला यों मनुज से 
काँटों से क्यूँ मैं घबराऊं 
मैं तो मेरा धर्म निभाऊं 
                    - प्रमिला 



फूल फूल से द्वेष है रखता  कलियाँ बागी  हो गई 
रात के अंधियारों से डर के सूनी गलियां सो गईं 
दहशतगर्दों की दहशत से मानवता की जड़ें हिल गई 
प्यार दया करुणा ममता की पन्नों पर बातें रह गई 
प्रमिला आर्य

प्रकृति का तांडव देख ऐसा लगा -

प्रकृति का तांडव देख  ऐसा लगा -

देखा सुन्दर  कुदरत  को  तो हैरां हो गए हम ,
लीलाधर की लीला पर नतमस्तक हो गए हम ,
मंज़र बर्बादी  का देखा हमने जब  इन्सां का ,
कैसा ये इन्साफ है उसका लगे सोचने हम .
प्रमिला आर्य       
ज़िन्दगी की 
टेडी मेढ़ी राहों पर 
चलते चलते .थक कर 
चकनाचूर 
हो गया पथिक 
लगने लगी 
ज़िन्दगी बोझिल 
आंधी आई ऐसी कि
धूल के गुबार में 
दब गई ज़िन्दगी 
दिल के अरमां 
सूखे पत्तों से 
चरमरा गए 
दिल टूटा 
अपनों का साथ छूटा
बदल गई ज़िन्दगी की
परिभाषा 
छा गई उदासी 
मायूसी और हताशा 
संताप तप्त पथिक 
विकल लाचार बेबस 
बैठा कोस रहा था 
ज़िन्दगी को 
तभी ......
हवा के झोंके का 
शीतल सुखद स्पर्श 
ऐसा मिला कि
सोच बदल गई 
राह बदल गई 
हताशा उदासी 
और मायूसी 
काफूर हो गई 
सोचने लगा वह 
बस बहुत हुआ 
अब ना रुकना है 
ना मायूस होना है 
मुझे चलना है
अनवरत चलना है 
अपने लिए जीना है 
वक्त की मार ne
मारा है अब तक 
अब कुछ कर 
दिखाना है वक्त को 
फिर चल पड़ा राही 
उत्साह उमंग 
उल्लास लिए मन में        
ज़िन्दगी सँवारने 
गन्तव्य को  पाने                   
समर्पण --- 
स्नेह प्रपूरित 
दीप का
स्नेह मिला
सम्बल मिला 
आश्रय मिला 
एक लघु स़ी 
कोमल स़ी 
बाती को तो,
 हो समर्पित
ज्योतित हुई      
और
तिमिराच्छादित
लोक को
कर दिया
प्रभा - प्रभासित /
कहने लगे हम
दीप जल गया
आलोक हो गया ,
जला कर
अस्तित्व अपना ....
दिलाई पहचान
दीप को ./,
यों .....
स्नेह सम्बल आश्रय का
प्रतिदान बाती ने दिया
हो समर्पित
बुझ गई फिर
लघु स़ी बाती //
हुई  समर्पित
लघु स़ी बाती
प्रमिला आर्य 
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जन्मदिन की शुभकामनाएं ......

जन्मदिन की शुभकामनाएं 
दिन दूनी निशि चौगुनी ,करें उन्नति आप 
मंगलमय है  कामना ,बढ़ता रहे प्रताप /
शब्द वर्ण विन्यास से ,करते वाणी विलास  
रचनायें रचते रहें ,ऐसी है अभिलास /
सुख समृद्धि सम्पदा , रहे हमेशा साथ 
शीश रहे नित आपके, माँ वागीशा हाथ /
प्रमिला आर्य 


फूलें फलें उन्नति करें खुशहाली हो जीवन में 
जन्मदिन के अवसर पर ये कामना करती हूँ मैं /
फूलों से नित बाग़ सजा हो  खुशबू से महके अंगना 
रबड़ी बनाऊं आज मैं ग़र ले आओ संग में सजना/
प्रमिला आर्य 

साहित्य संगीत और कला का 
माँ शारदे दे वरदान 
सतत साधना आराधन से 
पूरे हों तेरे अरमान  /
स्वस्थ सदा सुखी रहो तुम 
फूल खिले हों गुलशन में 
महिमा की महिमा बढे
नित खुशियाँ हो दामन में 
जन्मदिन के अवसर पर मैं 
कामना करती हूँ ये l
प्रमिला आर्य 

मानस में चिन्तन मनन,और लेखनी हाथ l
रचनाधर्मी  के सदा , मात शारदे  साथ ll

गुलदस्ता है हाथ में , भाभी जी हैं पास
तैलंग जी इक प्रश्न है ,अवसर है क्या ख़ास

स्वप्न------

स्वप्न------
सपनो के महल 
बनाये थे जो कभी 
बिखर गए  
घरौंदों के मानिंद ,
सपने सलोने 
जो देखे थे कभी 
बिखर गए 
टूट कर कांच की तरह ,
स्वप्न बिखरे टूटे ,
ध्वस्त हुवे तो क्या ?
हम ..
फिर से देखेंगे स्वप्न 
फूलों की तरह 
सुकोमल 
सुन्दर और मनोहर 
जो खिलेंगे फूलेंगे 
काँटों में रह कर भी  
महकाएँगे 
हमारी आशाओं के उपवन 
और -अंतत:
दे जायेंगे 
सुनहरे भविष्य के 
ठोस सुदृढ़ उपजाऊ 
नव बीज 
इस युग के 
बीज दे जाएंगे 
नव निर्माण के 
पुनर्निर्माण के 

काले बादल -------------

काले बादल 
-------------
प्यासी  धरती की प्यास बुझाने 
आये काले काले बादल
गरज गरज कर मचलमचल कर   
बरसे काले काले बादल 
शोले बरसाते गर्वित रवि का 
दम्भ  मिटाने आये बादल 
ताप तप्त जगतीतल भर का 
ताप मिटाने आये बादल                
पीताभ हुआ धरा का अँचल
धानी चूनर लाये बादल 
प्रमिला आर्य 
-------------
प्यासी  धरती की प्यास बुझाने 
आये काले काले बादल
गरज गरज कर मचलमचल कर   
बरसे काले काले बादल 
शोले बरसाते गर्वित रवि का 
दम्भ  मिटाने आये बादल 
ताप तप्त जगतीतल भर का 
ताप मिटाने आये बादल                
पीताभ हुआ धरा का अँचल
धानी चूनर लाये बादल 
प्रमिला आर्य 
तिल तिल जलता 
जग जंजालों में 
ज्वाला ज्वलित 
व्यथा व्यथित 
अभिशप्त मन तब 
चाहता निश्शेष पलों में 
मलय स़ी शीतलता 
और असीम शांति /
पर --
अभिलाष यह 
तीव्र जितनी 
लौ लपटें 
घनीभूत उतनी 
घेर लेती ज़िन्दगी को 
तोड़ देती हौंसले को 
मोड़ देती ज़िन्दगी की राह को /
पर होते हैं जो धीर वीर 
तान कर सीना खड़े हो 
करते डट कर सामना 
ललकारते 
विकराल रिपु को
रौंद देते नियति के 
घिनौने मंसूबों को 
और प्रतिकूल को 
अनुकूल कर 
मोड़ लेते ज़िन्दगी की राह को /
प्रमिला आर्य 

यादें .................


प्रार्थना प्रभु से................

 प्रार्थना प्रभु से
भक्ति का भाव भरदो हृदय में तेरे चरणों में वंदन  करूँ  मैं 
सारे जग का हो मंगल प्रभु जी तेरी पूजा ओअर्चन करूँ मैं 

महरबानी प्रभू  ऐसी  करना सुख दुःख में सदा सम रहूँ मैं 
दुखोंसे मन ना विचलित कभी हो मदमाऊं ना सुख में कभी मैं 
भक्ति का भाव भरदो हृदय में ....................................

कर्म करती रहूँ मैं सदा ही फल की इच्छा कभी ना हो मन में 
जग के जंजाल में ना मैं उलझूं जल में जैसे कमलवत रहूँ मैं 
भक्ति का भाव भर दो हृदय मैं ......................................

जल थल में तलातल चराचर में तेरी लीला का विस्तार स्वामी 
सर्वव्यापी  है  सत्ता  तिहारी दर्शन  कण- कण में तेरा  करूँ मैं 
भक्ति का भाव भरदो हृदय में ....................................
प्रमिला आर्य 

बसंत ...........

बसंत आया बीता पतझड़, पीला हुआ धरांचल l
आओ मिलकर खुशियों से हम, भर लें अपना आँचल ll

घनीभूत हो आसमान में, मदमाये गहराए l
गरज बरस कर बिखर गए अब, छंट गए काले बादल ll

पतझड़ से वीरान विटप पर, फूटी कोमल कोंपल l
कुहुक कुहुक कर गाने गाये, बैठ डाल पर कोयल ll

फूलों ने उपवन महकाया, करते भंवरे गुंजन l
भोर सुहानी शाम रूहानी, वसुधा का अरुणांचल ll

सनसन करती पवन सुहानी, हरती मन का व्याकुल l
कानों में रस ऐसे घोले, छनकी हो ज्यों पायल ll

बसंत अब ना जा पायेगा, मन विश्वास जगा ले l
पतझड़ का बस अंत हो गया, घायल खग क्यूँ पागल ll
- प्रमिला आर्य
उजाड़ रहा निर्मोही पतझर जब बगिया के सिंगार को ,
अवलोक रहा था लघु सा तिनका  वीराने संसार को ,
धीर बंधा कर तिनका बोला क्यों होती व्याकुल पगली .
दिन तेरे फिर से बदलेंगे आने  दे बसंत  बहार को ,
प्रमिला आर्य

पा कर स्वर का साथ तार वीणा के  बजने लगे
लय और आलाप के संग गीत सुन्दर सजने लगे
आरोही अवरोही बन कर राग मधुर बहने लगे 
भाव सरित की लहरों में अवगाहन करने लगे 
प्रमिला आर्य 
अपना भी तुझे लगे सताने 
ज़िन्दगी खुद लगे रुलाने 
साया अपना लगे डराने 
जग भी चाहे लगे मिटाने
बन नरेन्द्र हुंकार भर तू 
भव की मत परवाह कर तू 
जग के होंश उड़ाता चल तू 
ज़िन्दगी खुद बदल जाएगी
             हार का भी जीत का भी ज़िन्दगी तो एक मेला 
            राग का औ द्वेषता का मनुज ने है खेल खेला 

            ज़िन्दगी तो इक समर है डाल ना हथियार डर के 
             वीर बन के सामना कर सिह स़ी हुँकार भर के 
             जीत ले बन दीप तू घनघोर अंधियारा जो फैला 
              हार का भी जीत का भी ...........................

               चिकनी चुपड़ी बात करते पीठ पे वो ही वार करते 
                मीत ना होते कभी वे व्यर्थ में जो दम्भ भरते 
               मस्त हो वे घूमते ऑ सज्जनों ने कष्ट झेला   
              राग का और द्वेषता का .................         
             
               ठान ली गर मन में अपने कष्ट से क्यूँ आह भरना 
              औंखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या है डरना 
               हौंसलों  के  पर लगा कर भर उड़ाने तू अकेला 
               हार का कभी जीत का .........................

              अपनी आँखें बंद करके कर ना तू विश्वास जग में 
              फूल से जो रम्य दिखते शूल वो ही बोते मग में 
                आस्तिन के सांप बन कर दंश देते हैं विषेला 
                 राग का और द्वेषता का .....................

                  रोएगा तो जग हंसेगा तू हंसेगा जग जलेगा 
                 जगत की है रीत न्यारी अपना बन तुझको छलेगा 
                मीत अपना तू स्वयं बन सुखद हो या दुखद बेला 
                राग का और द्वेषता का ................................
        
             काल की ही ताल पे ये थिरकता संसार सारा 
             काल के ही वार से फिर सिहरता संहार हारा
             नाश कर देगा ये ऐसे जैसे माटी का हो ढेला 
             हार का भी जीत का भी .........................
                                                       प्रमिला आर्य 


























बाबुल .............

बाबुल तेरी लाडली , याद करे दिन रात 
दर्शन देते क्यों नहीं, रूठे हो क्या तात

बगिया  फूली  देख  के,  हर्षित  होते  आप 
खुशियों में अब साथ नहिं, मन में ये सन्ताप

बरस बीत गए पांच पर ,लगती कल की बात 
नाते तोड़ के चल दिए , लगता है  आघात 

लुटता रहा आशियाना..............

गीत
लुटता रहा आशियाना हम तो देखते रहे l
लाचारगी बेबसी के अश्रु पोंछते  रहे ll
 
अरमान दफ़ना सीनें में अभावों में खुद जिये l
उज़ड़ गया चमन हमारा सपने टूटते रहे ll

ये वक्त का तकाज़ा था बुलाये जब वो गए l
रिश्ते नाते भूल गए कन्नी काटते रहे ll

फ़र्ज़ निभाने में हम तो हमको भूल ही गए l
ज़िन्दगी की ख्वाहिशों को ताक़ में धरते रहे ll

दुखियों के पोंछ आँसू हम उनकी पीर  को हरेंl
इन्सां वही   इंसानियत की राह जो चलता रहे ll
                                     प्रमिला  आर्य 

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Monday, 6 August 2012

तार वीणा के

पा कर स्वर का साथ तार वीणा के  बजने लगे 
लय और आलाप के संग गीत सुन्दर सजने लगे 
आरोही अवरोही बन कर राग मधुर बहने लगे  
भाव सरित की लहरों में अवगाहन करने लगे 
प्रमिला आर्य 

Wednesday, 1 August 2012

राखी haaiku


दुआ दिल से 
करे भाई बहना 
खुश रहना 
=========
राखी त्यौहार 
रेशम की डोरी में 
प्यार अपार 
=========
शुभकामना 
करती है बहना 
बीर हो खुश 
===========
पर्व का हर्ष 
पाए चरमोत्कर्ष 
मेरा भइया
प्रमिला आर्य


होता पवन
भाई बहन प्यार
मन भावन
============
रिश्तों का मान
भारत में केवल
ना है विदेस
===========
दुआ दिल से 
करे भाई बहना 
खुश रहना 
=========
राखी त्यौहार 
रेशम की डोरी में 
प्यार अपार 
=========
शुभकामना 
करती है बहना 
बीर हो खुश 
===========
पर्व का हर्ष 
पाए चरमोत्कर्ष 
मेरा भइया
प्रमिला आर्य 
 
प्रमिला आर्य 
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एक और लोकोक्ति - ******दीन- दुखी की पीर हरी हो ,**********

दीन- दुखी की पीर हरी हो  ,
मात -पिता की सेवा की हों
जीवन में सत्कर्म किये हों 
मन में यदि सुविचार बसे हों
काशी-काबा-मक्का मदीना
तीरथ हज सब यहीं कर लीना
इसीलिए तो बात कही है, कि-

"मन चंगा तो कठौती में गंगा "
प्रमिला आर्य 

हाइकु-----------

हाइकु
होता पावन
भाई -बहन प्यार 
मन भावन
==============

आए ना रास 
आँखों देखे सपन 
मन में आस 
============

गरजे मेघ
डरे मेरा जियरा
पी नहीं पास 
===========

प्र बाधाओं से तू
क्यों होता विचलित
रख हौंसला
===========

कर श्रृंगार
गोरिया जोवे बाट 
आओ सजन
==========
पनघट  पे 
सखियाँ जाती पानी
कहे  कहानी 
=============
पवन बहे
रहो चलायमान
हमसे कहे
======

कर्म ही धर्म
करता प्रगति वो
जान ले मर्म
==

मोम सा दिल 
सह ना पता ताप 
पिघल जाता 
===========
घर में सहे
नारी कितनी पीर
बाहर हँसे
============
बादल आए
बरसे बिन गए
टूटी आस

बेटियों से ही
मेरा घर संसार
करती प्यार
==========
घर की शान 
रौनक होती बेटी
बढ़ाती मान
==========


रचा मानस 
महान तुलसी ने  
जयंती आज 
=========
होते पावन
स्वार्थ रहित रिश्ते 
मन भावन 
========= 
बेटियां होती
नज़दीक दिल के
लगती प्यारी
=========
गिरने पर
क्यूँ रोता है पगले 
उठ चल जा
==========
आज के नन्हे
भारत माँ की शान
हैं ये कल के
=========
गुलाब खिला
काँटों घिरा फिर भी
खुशबू देता

भूखी जनता
हो रही है बेहाल
वो हैं निहाल
=========

रक्षा बंधन -------------

रक्षा बंधन -------------
एक वो  दिन थे , जो बीते थे  
आँगन में अपने भाई के संग   
कभी प्यार से खेल खेलना  
तो कभी लड़ना झगड़ना 
उसकी चीजों को छीनना
ना मिलने पर रोना झिडकना 
और गुस्सा करना 
फिर माँ बापू से डाट पडवाना 
और अब -----
तड़प रही है वही बहना
जाने को भाई के अंगना 
मनाने रक्षा बंधन /
कब से लगाएबैठी थी आस,पर  
नहीं जा पाएगी भाई के पास 
हो रहा था आभास 
क्योंकि .....
आने वाली थी पीहर में 
सजना की बहना /
करती थी कभी बेसब्री से 
इंतज़ार इस पर्व का 
बांध रक्षा सूत्र रेशम का 
भाई की कलाई पर 
होता था अहसास गर्व का 
आज टूट गया बाँध सब्र का 
बहने लगी अविरल अश्रुधारा / 
कैसी विवशता और लाचारी 
राखी भी भेज ना पाई बेचारी 
तलाशा तरीका एक ..
बोली पुरवा से 
सुन री पवन पुरवाई 
तू जा ना री.. 
उस अंगना ,जहाँ है मेरा भाई 
छूना  उसकी कलाई 
और कहना यूँ
 कि .......
मैं हूँ-- तेरी बहना की राखी 
मैं हूँ तेरी बहना की राखी 
प्रमिला आर्य