यादें
शाम के झुरमुट में
गाय बैलों का नगर में लौट आना
गले की घंटियों का टनटनाना
चलने से धूल के गुबार उड़ना
आँगन में लगी द्राक्षालता पर
— with Raghunath Misra in Kota.शाम के झुरमुट में
गाय बैलों का नगर में लौट आना
गले की घंटियों का टनटनाना
चलने से धूल के गुबार उड़ना
आँगन में लगी द्राक्षालता पर
संध्या बेला में
चिड़ियों का चहचहाना
आज भी याद आता है
कभी व्याकुल करता तो कभी गुदगुदाता है
नगर के गली गलियारों में
कौड़ी पव्वा गुल्ली डंडा
लुका छिपी और सतौलिया खेलना
आज भी याद आता है
कभी अकुलाता तो कभी गुदगुदाता है
आस पडौस के वो घर
जहाँ बैठ काकी जी भाभी जी
माँ साब बा साब का
आपस में बतियाना खिलखिलाना
सुख दुःख बांटना और
गीत भजन गुनगुनाना
आज भी याद आता है
कभी अकुलाता तो कभी गुदगुदाता है
शादी ब्याह सगाई समारोह हो
या मंजर हो मातम का
हैरानी हो या बीमारी
सुख में हो या दुःख में कोई
साथ देना और फ़र्ज़ निभाना
आज भी याद आता है
कभी व्याकुल करता तो कभी गुदगुदाता है
मेरा छोटा सा नगर
मेरी पुण्य जन्मभूमि
जहाँ के मंदिरों में
झालरों का बजना
समवेत स्वरों में
पूजा अर्चन करना
द्वारकाधीश के मंदिर पर
बँटने वाली खिचड़ी
और उस खिचड़ी का स्वाद
आज भी याद आता है
कभी अकुलाता तो कभी गुदगुदाता है
ऐसा था मेरा छोटा सा
प्यारा सा नगर झालरापाटन
जहाँ की झालरों की सुमधुर झंकार
सुदूर गावों को झंकृत कर अपने
नाम को स्वयं सार्थक करता
आज भी याद आता है
कभी व्याकुल करता तो कभी गुदगुदाता है
प्रमिला आर्य
चिड़ियों का चहचहाना
आज भी याद आता है
कभी व्याकुल करता तो कभी गुदगुदाता है
नगर के गली गलियारों में
कौड़ी पव्वा गुल्ली डंडा
लुका छिपी और सतौलिया खेलना
आज भी याद आता है
कभी अकुलाता तो कभी गुदगुदाता है
आस पडौस के वो घर
जहाँ बैठ काकी जी भाभी जी
माँ साब बा साब का
आपस में बतियाना खिलखिलाना
सुख दुःख बांटना और
गीत भजन गुनगुनाना
आज भी याद आता है
कभी अकुलाता तो कभी गुदगुदाता है
शादी ब्याह सगाई समारोह हो
या मंजर हो मातम का
हैरानी हो या बीमारी
सुख में हो या दुःख में कोई
साथ देना और फ़र्ज़ निभाना
आज भी याद आता है
कभी व्याकुल करता तो कभी गुदगुदाता है
मेरा छोटा सा नगर
मेरी पुण्य जन्मभूमि
जहाँ के मंदिरों में
झालरों का बजना
समवेत स्वरों में
पूजा अर्चन करना
द्वारकाधीश के मंदिर पर
बँटने वाली खिचड़ी
और उस खिचड़ी का स्वाद
आज भी याद आता है
कभी अकुलाता तो कभी गुदगुदाता है
ऐसा था मेरा छोटा सा
प्यारा सा नगर झालरापाटन
जहाँ की झालरों की सुमधुर झंकार
सुदूर गावों को झंकृत कर अपने
नाम को स्वयं सार्थक करता
आज भी याद आता है
कभी व्याकुल करता तो कभी गुदगुदाता है
प्रमिला आर्य
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