उजाड़ रहा निर्मोही पतझर जब बगिया के सिंगार को ,
अवलोक रहा था लघु सा तिनका वीराने संसार को ,
धीर बंधा कर तिनका बोला क्यों होती व्याकुल पगली .
दिन तेरे फिर से बदलेंगे आने दे बसंत बहार को ,
अवलोक रहा था लघु सा तिनका वीराने संसार को ,
धीर बंधा कर तिनका बोला क्यों होती व्याकुल पगली .
दिन तेरे फिर से बदलेंगे आने दे बसंत बहार को ,
प्रमिला आर्य
पा कर स्वर का साथ तार वीणा के बजने लगे
लय और आलाप के संग गीत सुन्दर सजने लगे
आरोही अवरोही बन कर राग मधुर बहने लगे
भाव सरित की लहरों में अवगाहन करने लगे
प्रमिला आर्य
पा कर स्वर का साथ तार वीणा के बजने लगे
लय और आलाप के संग गीत सुन्दर सजने लगे
आरोही अवरोही बन कर राग मधुर बहने लगे
भाव सरित की लहरों में अवगाहन करने लगे
प्रमिला आर्य
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