Wednesday, 1 August 2012

एक और लोकोक्ति - ******दीन- दुखी की पीर हरी हो ,**********

दीन- दुखी की पीर हरी हो  ,
मात -पिता की सेवा की हों
जीवन में सत्कर्म किये हों 
मन में यदि सुविचार बसे हों
काशी-काबा-मक्का मदीना
तीरथ हज सब यहीं कर लीना
इसीलिए तो बात कही है, कि-

"मन चंगा तो कठौती में गंगा "
प्रमिला आर्य 

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