गीत
लुटता रहा आशियाना हम तो देखते रहे l
लाचारगी बेबसी के अश्रु पोंछते रहे ll
अरमान दफ़ना सीनें में अभावों में खुद जिये l
उज़ड़ गया चमन हमारा सपने टूटते रहे ll
ये वक्त का तकाज़ा था बुलाये जब वो गए l
रिश्ते नाते भूल गए कन्नी काटते रहे ll
फ़र्ज़ निभाने में हम तो हमको भूल ही गए l
ज़िन्दगी की ख्वाहिशों को ताक़ में धरते रहे ll
दुखियों के पोंछ आँसू हम उनकी पीर को हरेंl
इन्सां वही इंसानियत की राह जो चलता रहे ll
प्रमिला आर्य
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