बसंत आया बीता पतझड़, पीला हुआ धरांचल l
आओ मिलकर खुशियों से हम, भर लें अपना आँचल ll
घनीभूत हो आसमान में, मदमाये गहराए l
गरज बरस कर बिखर गए अब, छंट गए काले बादल ll
पतझड़ से वीरान विटप पर, फूटी कोमल कोंपल l
कुहुक कुहुक कर गाने गाये, बैठ डाल पर कोयल ll
फूलों ने उपवन महकाया, करते भंवरे गुंजन l
भोर सुहानी शाम रूहानी, वसुधा का अरुणांचल ll
सनसन करती पवन सुहानी, हरती मन का व्याकुल l
कानों में रस ऐसे घोले, छनकी हो ज्यों पायल ll
बसंत अब ना जा पायेगा, मन विश्वास जगा ले l
पतझड़ का बस अंत हो गया, घायल खग क्यूँ पागल ll
- प्रमिला आर्य
आओ मिलकर खुशियों से हम, भर लें अपना आँचल ll
घनीभूत हो आसमान में, मदमाये गहराए l
गरज बरस कर बिखर गए अब, छंट गए काले बादल ll
पतझड़ से वीरान विटप पर, फूटी कोमल कोंपल l
कुहुक कुहुक कर गाने गाये, बैठ डाल पर कोयल ll
फूलों ने उपवन महकाया, करते भंवरे गुंजन l
भोर सुहानी शाम रूहानी, वसुधा का अरुणांचल ll
सनसन करती पवन सुहानी, हरती मन का व्याकुल l
कानों में रस ऐसे घोले, छनकी हो ज्यों पायल ll
बसंत अब ना जा पायेगा, मन विश्वास जगा ले l
पतझड़ का बस अंत हो गया, घायल खग क्यूँ पागल ll
- प्रमिला आर्य
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