हार का भी जीत का भी ज़िन्दगी तो एक मेला
राग का औ द्वेषता का मनुज ने है खेल खेला
ज़िन्दगी तो इक समर है डाल ना हथियार डर के
वीर बन के सामना कर सिह स़ी हुँकार भर के
जीत ले बन दीप तू घनघोर अंधियारा जो फैला
हार का भी जीत का भी ...........................
चिकनी चुपड़ी बात करते पीठ पे वो ही वार करते
मीत ना होते कभी वे व्यर्थ में जो दम्भ भरते
मस्त हो वे घूमते ऑ सज्जनों ने कष्ट झेला
राग का और द्वेषता का .................
ठान ली गर मन में अपने कष्ट से क्यूँ आह भरना
औंखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या है डरना
हौंसलों के पर लगा कर भर उड़ाने तू अकेला
हार का कभी जीत का .........................
अपनी आँखें बंद करके कर ना तू विश्वास जग में
फूल से जो रम्य दिखते शूल वो ही बोते मग में
आस्तिन के सांप बन कर दंश देते हैं विषेला
राग का और द्वेषता का .....................
रोएगा तो जग हंसेगा तू हंसेगा जग जलेगा
जगत की है रीत न्यारी अपना बन तुझको छलेगा
मीत अपना तू स्वयं बन सुखद हो या दुखद बेला
राग का और द्वेषता का .............................. ..
काल की ही ताल पे ये थिरकता संसार सारा
काल के ही वार से फिर सिहरता संहार हारा
नाश कर देगा ये ऐसे जैसे माटी का हो ढेला
हार का भी जीत का भी .........................
प्रमिला आर्य
राग का औ द्वेषता का मनुज ने है खेल खेला
ज़िन्दगी तो इक समर है डाल ना हथियार डर के
वीर बन के सामना कर सिह स़ी हुँकार भर के
जीत ले बन दीप तू घनघोर अंधियारा जो फैला
हार का भी जीत का भी ...........................
चिकनी चुपड़ी बात करते पीठ पे वो ही वार करते
मीत ना होते कभी वे व्यर्थ में जो दम्भ भरते
मस्त हो वे घूमते ऑ सज्जनों ने कष्ट झेला
राग का और द्वेषता का .................
ठान ली गर मन में अपने कष्ट से क्यूँ आह भरना
औंखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या है डरना
हौंसलों के पर लगा कर भर उड़ाने तू अकेला
हार का कभी जीत का .........................
अपनी आँखें बंद करके कर ना तू विश्वास जग में
फूल से जो रम्य दिखते शूल वो ही बोते मग में
आस्तिन के सांप बन कर दंश देते हैं विषेला
राग का और द्वेषता का .....................
रोएगा तो जग हंसेगा तू हंसेगा जग जलेगा
जगत की है रीत न्यारी अपना बन तुझको छलेगा
मीत अपना तू स्वयं बन सुखद हो या दुखद बेला
राग का और द्वेषता का ..............................
काल की ही ताल पे ये थिरकता संसार सारा
काल के ही वार से फिर सिहरता संहार हारा
नाश कर देगा ये ऐसे जैसे माटी का हो ढेला
हार का भी जीत का भी .........................
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