तिल तिल जलता
जग जंजालों में
ज्वाला ज्वलित
व्यथा व्यथित
अभिशप्त मन तब
चाहता निश्शेष पलों में
मलय स़ी शीतलता
और असीम शांति /
पर --
अभिलाष यह
तीव्र जितनी
लौ लपटें
घनीभूत उतनी
घेर लेती ज़िन्दगी को
तोड़ देती हौंसले को
मोड़ देती ज़िन्दगी की राह को /
पर होते हैं जो धीर वीर
तान कर सीना खड़े हो
करते डट कर सामना
ललकारते
विकराल रिपु को
रौंद देते नियति के
घिनौने मंसूबों को
और प्रतिकूल को
अनुकूल कर
मोड़ लेते ज़िन्दगी की राह को /
प्रमिला आर्य
जग जंजालों में
ज्वाला ज्वलित
व्यथा व्यथित
अभिशप्त मन तब
चाहता निश्शेष पलों में
मलय स़ी शीतलता
और असीम शांति /
पर --
अभिलाष यह
तीव्र जितनी
लौ लपटें
घनीभूत उतनी
घेर लेती ज़िन्दगी को
तोड़ देती हौंसले को
मोड़ देती ज़िन्दगी की राह को /
पर होते हैं जो धीर वीर
तान कर सीना खड़े हो
करते डट कर सामना
ललकारते
विकराल रिपु को
रौंद देते नियति के
घिनौने मंसूबों को
और प्रतिकूल को
अनुकूल कर
मोड़ लेते ज़िन्दगी की राह को /
प्रमिला आर्य
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