Tuesday, 7 August 2012

तिल तिल जलता 
जग जंजालों में 
ज्वाला ज्वलित 
व्यथा व्यथित 
अभिशप्त मन तब 
चाहता निश्शेष पलों में 
मलय स़ी शीतलता 
और असीम शांति /
पर --
अभिलाष यह 
तीव्र जितनी 
लौ लपटें 
घनीभूत उतनी 
घेर लेती ज़िन्दगी को 
तोड़ देती हौंसले को 
मोड़ देती ज़िन्दगी की राह को /
पर होते हैं जो धीर वीर 
तान कर सीना खड़े हो 
करते डट कर सामना 
ललकारते 
विकराल रिपु को
रौंद देते नियति के 
घिनौने मंसूबों को 
और प्रतिकूल को 
अनुकूल कर 
मोड़ लेते ज़िन्दगी की राह को /
प्रमिला आर्य 

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