Wednesday, 1 August 2012

रक्षा बंधन -------------

रक्षा बंधन -------------
एक वो  दिन थे , जो बीते थे  
आँगन में अपने भाई के संग   
कभी प्यार से खेल खेलना  
तो कभी लड़ना झगड़ना 
उसकी चीजों को छीनना
ना मिलने पर रोना झिडकना 
और गुस्सा करना 
फिर माँ बापू से डाट पडवाना 
और अब -----
तड़प रही है वही बहना
जाने को भाई के अंगना 
मनाने रक्षा बंधन /
कब से लगाएबैठी थी आस,पर  
नहीं जा पाएगी भाई के पास 
हो रहा था आभास 
क्योंकि .....
आने वाली थी पीहर में 
सजना की बहना /
करती थी कभी बेसब्री से 
इंतज़ार इस पर्व का 
बांध रक्षा सूत्र रेशम का 
भाई की कलाई पर 
होता था अहसास गर्व का 
आज टूट गया बाँध सब्र का 
बहने लगी अविरल अश्रुधारा / 
कैसी विवशता और लाचारी 
राखी भी भेज ना पाई बेचारी 
तलाशा तरीका एक ..
बोली पुरवा से 
सुन री पवन पुरवाई 
तू जा ना री.. 
उस अंगना ,जहाँ है मेरा भाई 
छूना  उसकी कलाई 
और कहना यूँ
 कि .......
मैं हूँ-- तेरी बहना की राखी 
मैं हूँ तेरी बहना की राखी 
प्रमिला आर्य 

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